जिनका सेवा भाव उदार
चातुरगढ़ के चतुर संत थे सेवा भावी हँसमुख
संघ-संघपति के चरणों में रहे सदा वे सम्मुख
श्री तुलसी महाप्रज्ञ से पाई सचमुच कृपा अपार।।
मुनिवर श्रीडूंगर मुनि चंपक मुनि नगराज मुनि की
सेवा सझी सजोरी भारी लगी सभी को नीकी
काम काज में थे हड़ीफ वे मिलनसार साकार।।
अहमदाबाद में मुझे मिला उनकी सेवा का मौका
छह महीनों का समय अरे! वह मौका बड़ा अनोखा
दिल-दिमाग में बसी हुई है उनकी कृपा अपार।।
अंतिम दिन जो हुई वेदना शब्दों में न कह पाए
महाश्रमण शासन में मुनिवर शांति स्वर्ग सिधाए
मुनि चैतन्य ‘अमन’ कामना पाओ मोक्ष उदार।।
लय: गण का गौरव गाएँ हम---