आत्मयुद्ध कर मोहनीय कर्म को जीतने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
दो दिवसीय जेटीएन प्रतिनिधि सम्मेलन का शुभारंभ
संघीय समाचारों का सक्षम माध्यम है तेरापंथ टाइम्स
लहरिया (जोधपुर बाहर), 24 दिसंबर, 2022
अध्यात्म के महासागर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 6 किलोमीटर का विहार कर लहरिया ग्राम के मेहता परिवार में पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी शांति और सुखपूर्वक जीना चाहता है जिनके पास मन है, सुख से जीना चाहता है। कोई दुःख से जीना नहीं चाहता। सर्वदुःख मुक्ति हो जाए वह परम स्थान होता है। सर्व दुःख मुक्ति जहाँ आठों ही कर्म न रहें, वह मोक्ष की स्थिति होती है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए कुछ संघर्ष-युद्ध करना पड़ सकता है। अहिंसा के जगत में युद्ध करने की बात अमान्य हो सकती है। पर शास्त्रकार तो महान व्यक्तित्व होते हैं, उन्होंने कहा युद्ध करो, अपनी आत्मा के साथ ही युद्ध करो, अपने आपसे लड़ो। अपने आप से लड़ने से परम सुख की प्राप्ति होती है, मिलने के बाद वापस जाता नहीं है।
आत्म-शुद्धि के लिए गुरु का संरक्षण भी प्राप्त हो सकता है? योग्य और अच्छे गुरु का मिलना विशेष बात होती है। गुरु अपने तरीके से शिष्यों का निर्माण करने का प्रयास कर सकते हैं। कभी गुरु अप्रसन्नता भी प्रकट कर लेते थे। उदाहरण देखना हो तो पूज्य भारीमाल जी स्वामी और मौजीराम जी स्वामी का उदाहरण सटीक बैठ सकता है। पूज्य कालूगणी और पृथ्वीराज जी स्वामी के उदाहरण हमारे संघीय उदाहरण हैं। इतिहास से जानकारी मिल सकती है। प्रसंगों को विस्तार से समझाया। आचार्य भिक्षु को तो किसी आचार्य ने उत्तराधिकारी नहीं बनाया था। उनका तो प्रायः आचार्य काल ही रहा था, मुनि काल नहीं। आचार्य के पथदर्शन में शिष्य आत्मशुद्धि में आगे बढ़े। कड़ाई भी आत्मयुद्ध में अपेक्षित हो सकती है। उस कड़ाई का लक्ष्य शांति है। गुरु का साध्य यही रहता है कि शिष्य का विकास हो।
किस लक्ष्य से व्यक्ति क्या काम करता है, वह महत्त्वपूर्ण बात होती है। साध्य क्या है, यही बड़ी चीज होती है। शिष्य प्रमाद से मुक्त हो जाता है, तो गुरु द्वारा दी गई कड़ाईरूपी बात सफल हो जाती है। आत्मशुद्धि के लिए अप्रमाद का सहारा लेना होगा। हिंसा-हिंसा के परिणामों में अंतर हो सकता है। द्रव्य हिंसा से पाप कर्म लगे जरूरी नहीं। आत्मयुद्ध में मोह कर्म को जीतने का प्रयास होना चाहिए। कषाय और अशुभ योग का आत्मा के साथ युद्ध हो तो आत्मा परम शांति को प्राप्त कर लेती है। आत्म युद्ध करना है, तो चोट मोहनीय कर्म पर करनी है। जहाँ उचित है, वहाँ चोट लगाएँगे तो हम आत्म विजय की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।
आज मुनि विश्रुत जी के ननिहाल परिवार के परिसर में आए हैं। मेहता परिवार में खूब धर्म की भावना रहे। साध्वीवर्या तो आज आ नहीं सकी हैं। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि तीन दिन के जोधपुर प्रवास में अनेक लोग पूज्यप्रवर के उपपात में दर्शनार्थ आए हैं। गुरु चरणों का स्पर्श करने के लिए हर व्यक्ति आतुर रहता है। हमारे अनेक प्राचीन स्तोत्रों में भगवान के चरणों में प्रणाम किया गया है। चरणों को विशेष महत्त्व दिया गया है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में विजय मेहता, मेहता परिवार की बहनों ने गीत, राजू मेहता, हणुमंतराज मेहता ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। बाबूलाल जैन बालोतरा वालों ने 21 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।