अपनी शक्ति का उपयोग स्व-पर कल्याण के लिए करें: आचार्यश्री महाश्रमण
जोधपुर, 22 दिसंबर, 2022
महायोगी आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 5 किलोमीटर का विहार कर जोधपुर के सरदारपुरा क्षेत्र में पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारे जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व होता है। शक्ति के बिना आदमी कुछ नहीं कर सकता है। प्रश्न है कि शक्ति कैसे मिले? और शक्ति का क्या उपयोग? वासुदेवों ने तो शक्तिशाली बनने का पूर्व जन्म में निदान कर दें, शक्तिशाली बने। अध्यात्म जगत में निदान करना अवांछनीय हो जाता है। संकल्प यह हो कि मुझे जो शक्ति मिलेगी या है, मैं अपने जीवन में कभी शक्ति का दुरुपयोग न करूँ। शक्ति का दुरुपयोग करने वाला दुर्जन आदमी होता है।
दूसरा संकल्प हो कि मैं अपनी शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करूँ। मेरी शक्ति किसी को चित्त समाधि और कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ाने में योगभूत बने। शक्ति शरीर और मन दोनों की होती है। आदमी के आत्मबल जाग जाए तो यह बहुत ऊँची बात होती है। आचार्यश्री भिक्षु का आत्मबल-मनोबल बहुत मजबूत था। मनोबल-आत्मबल मजबूत हो तो कठिनाईयों को झेला जा सकता है।
दुनिया में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं। एक वे मनुष्य जो कठिनाईयों के भय से विघ्न-बाधाओं के भय से कोई अच्छे कार्य का प्रारंभ ही नहीं करते, उनमें आत्मबल नहीं होता है। वह निम्न श्रेणी का मनुष्य होता है। दूसरी कोटि का मनुष्य जो कार्य का प्रारंभ तो कर देता है, पर जब कठिनाईयाँ आती हैं, तो आगे नहीं बढ़ पाता है। वो मध्यम श्रेणी का मनुष्य होता है। उत्तम श्रेणी का मनुष्य वह होता है कि कार्य का प्रारंभ कर दिया, बार-बार विघ्न आते हैं, तो भी वह आदमी आगे बढ़ने का प्रयास करता है। घुटने नहीं टेकता। साधु में आत्मबल होता है, तो साधु परिषहों को सहन कर सकता है। आज पौष कृष्णा चतुर्दशी है। चतुर्दशी को हाजरी का वाचन होता है। जोधपुर में तेरह की संख्या का निमित्त बना। तेरह साधु, तेरह श्रावक और तेरह ही साधुओं के नियम। हे! प्रभो यह तेरापंथ का प्रसंग जोधपुर से जुड़ा है। 1984 के चातुर्मास में गुरुदेव तुलसी के साथ मैं भी यहीं था।
पूज्यप्रवर ने संक्षेप रूप में हाजरी का वाचन किया। पाँच महाव्रत, पाँच कीमती रत्न हैं। हम मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहकर पालने का प्रयास करें। धर्म की रक्षा हम करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा कर सकेगा। 1984 के चातुर्मास के प्रसंग समझाए। मैं संभवतः चौथी बार जोधपुर आया हूँ। हम हाजरी से प्रेरणा लें और मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहें। नव दीक्षित मुनि चिन्मय कुमार जी ने लेख-पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने 21 कल्याणक बख्शाए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में जोधपुर का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। तेरापंथ के नामकरण के साथ-साथ यहाँ के श्रावकों ने विशेष स्थान बनाया है। वि0सं0 1928 में पूज्य जयाचार्य का चातुर्मास जयपुर में था उस समय दिव्य वाणी हुई थी कि आपके तीन श्रावक तीर्थंकर गौत्र का बंध करने वाले हैं। भैरूलाल सिंघड़, ताराचंद ढिलीवाल और बादरमल भंडारी संघ प्रभावना में उत्कृष्ट रसायन उनमें आया था और तीर्थंकर गौत्र बंध के बारे में बताया जाता है। बहादुरमल भंडारी का विशेष इतिहास रहा है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप सरदारपुरा द्वारा गीत, सभा से सुरेश जीरावला ने गीत के माध्यम से अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वी सत्यवती जी के सिंघाड़े ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। साध्वी शशिप्रभा जी व अन्य साध्वियों ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।