भौतिक जीवन रूपी गाड़ी में रहे आध्यात्मिकता और नैतिकता रूपी ब्रेक: आचार्यश्री महाश्रमण
जोधपुर बाहर, 20 दिसंबर, 2022
परम जनोद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः 22 किलोमीटर का विहार कर जिनेट परिवार परिसर में पधारे। मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए महातपस्वी आचार्यप्रवर ने फरमाया कि चौबीस तीर्थंकरों में सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ हुए हैं। वे चक्रवर्ती और महान ऋद्धि संपन्न थे। दुनिया में अध्यात्म के जगत में संभवतः सबसे बड़ा पद है तो तीर्थंकर का है। भौतिक जगत का बहुत बड़ा व्यक्ति चक्रवर्ती होता है। जो मनुष्य एक ही जीवन काल में चक्रवर्ती बने और उसी जीवन काल में तीर्थंकर भी बने, वह तो कितना बड़ा आदमी हो गया। भगवान शांतिनाथ ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने चक्रवर्ती और तीर्थंकरत्व दोनों का प्रलण किया। संसार की दृष्टि में भौतिकता बड़ी चीज हो सकती है, पर अध्यात्म के सामने भौतिकता बिलकुल छोटी चीज होती है। दुनिया का चक्रवर्ती आ जाए और साधु बैठा है तो वह अकिंचन साधु चक्रवर्ती के लिए पूजनीय है। साधु में त्याग है, जबकि चक्रवर्ती तो श्रावक भी नहीं बन पाता है। गृहस्थ के पास अकूट धन है, पर साधु की साधना के सामने वह साधारण सा है। साधु के पास संयम का रत्न है।
धन आगे काम नहीं आता है, पर त्याग आगे काम आ सकता है। भौतिकता के जीवन पर आध्यात्मिकता का प्रभाव रहना चाहिए। नैतिकता और आध्यात्मिकता का कंट्रोल भौतिकता पर रहता है, तो भौतिकता की गाड़ी ठीक-ठाक चल सकती है। भौतिकता पर नैतिकता आध्यात्मिकता का ब्रेक नहीं है तो भौतिकता की गाड़ी खतरनाक सिद्ध हो सकती है। गार्हस्थ्य और भौतिक जगत में धन का महत्त्व है। शांतिनाथ भगवान के तो नाम में ही शांति है। जीवन में पैसा है, और शांति नहीं है तो एक बड़ी कमी है। जीवन में पैसे से ज्यादा सेवा को महत्त्व दें। गृहस्थ जीवन में भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता जुड़ी रहे तो गृहस्थ जीवन ठीक-ठाक चल सकेगा। अर्थ एक ऐसी चीज है, जिसकी गृहस्थों के लिए उपयोगिता है, पर पैसे के अर्जन में नैतिकता भी रहे। अर्थ पर धर्म का अंकुश रहे। निरंकुशक धन अशुद्ध हो सकता है। साधु तो पैसे के त्यागी हैं। कमल पानी में रहकर निर्लोप रहता है। आध्यात्मिकता का पुट जीवन में है, तो शांति रह सकती है।
सुरेंद्र के यहाँ आज आए हैं। जीवन में धार्मिकता रहे। पूज्यप्रवर ने संकल्प स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में सुरेंद्र पटावरी, लघु भारती से अनिल अग्रवाल, संदीप पटावरी, सुखी चोपड़ा व युवा वर्ग ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सज्जन व्यक्तियों के समूह में कोई रहता है तो उनकी सुगंध की अनुभूति होती है और जब वे छोड़कर चले जाते हैं, तो उनके गुणों की सुगंध हमेशा महसूस होती रहती है। हमें सज्जन व्यक्तियों की संगत करनी है। सज्जन या साधु व्यक्ति का पदार्पण होता है तो वह अपने आपमें महनीय होता है। आज जिनेट परिवार में महान संत महाश्रमणजी का आगमन हुआ है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।