आदमी व्यस्त रहे परंतु दिमाग को अस्त-व्यस्त ना रखे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आदमी व्यस्त रहे परंतु दिमाग को अस्त-व्यस्त ना रखे: आचार्यश्री महाश्रमण

जोधपुर, 21 दिसंबर, 2022
सूर्यनगरी जोधपुर राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का प्रमुख शहर जहाँ पर आज प्रातः 12 किलोमीटर का विहार कर तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी का अपनी धवल सेना के साथ पदार्पण हुआ। जो तेरापंथ के नामकरण और आचार्य भिक्षु से जुड़ा स्थान है। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगम दसवें आलियं का प्रथम श्लोक हैµ‘धम्मो मंगल मुक्किट्ठं---।’ इस श्लोक के चार चरणों में धर्म का सार भर दिया गया है। आदमी मंगलकामना करता है। अपना व दूसरों का मंगल चाहता है। जो आदमी दूसरों के लिए अमंगल चाहता है, मानो वह खुद के लिए अमंगल तैयार करने लग जाता है।
मंगल की कामना होती है, तो आदमी मंगल का प्रयास भी करता है। विशेष कार्य के प्रारंभ के लिए मुहूर्त देखा जाता है। कई पदार्थों का मंगल के लिए उपयोग किया जाता है। इनका कुछ अपना महत्त्व हो सकता है, पर ये उत्कृष्ट-बड़े मंगल नहीं हैं। उत्कृष्ट मंगल धर्म है। शास्त्रकार ने किसी धर्म-संप्रदाय का नाम न लेकर कह दिया जहाँ अहिंसा, संयम, तप है, वह धर्म उत्कृष्ट मंगल है। ये धर्म का सार हो गया जो पालेगा उसके धर्म है, मंगल है।
किसी भी वेष में धर्म की साधना करने वाला सिद्ध-मुक्त बन सकता है। यह जैन दर्शन में बताया गया है कि अन्य लिंगी या गृहस्थ के वेष में जिसके जीवन में धर्म आ गया वह मुक्ति प्राप्त कर सकता है। धर्म में कोई शर्त नहीं है। धर्म भावों में आ गया तो कल्याण हो सकता है। हमारे में सद्भावना रहे। विभिन्न जातियाँ, धर्म संप्रदाय व वेशभूषाएँ हैं पर कोई भी हिंसा में न जाए। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रहे। आदमी व्यस्त रह सकता है, पर दिमाग अस्त-व्यस्त न रहे। अणुव्रत भी यही सिखाता है। पूजा की अपनी-अपनी विधि है, पर कार्य में नैतिकता, अहिंसा, संयम तो हर संप्रदाय सिखाता है।
तपस्या के भी विविध प्रकार हैं। अहिंसा, संयम और तप जिसके जीवन में हैं, तो मंगल हमारे साथ-साथ चलेगा। मंगलपाठ भी सुनाया जाता है। न्याय पाने का साधन भी शुद्ध रहे। जिसका मन हमेशा धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। जोधपुर तेरापंथ के नामकरण से जुड़ी भूमि है। आज हमारा यहाँ आना हुआ। जोधपुर अच्छा शहर है। जनता में बौद्धिकता के साथ भाव शुद्धि भी रहे। धर्म और अच्छे संस्कार जीवन में जुड़े रहें तो यह जीवन अच्छा रह सकता है और आगे का भी जीवन अच्छा हो सकता है। मुनि डालगणी को आचार्य निर्वाचन की सूचना भी यहीं प्राप्त हुई थी। भंडारीजी भी यहीं से थे। जिस शहर में अहिंसा, ईमानदारी हो वह शहर अच्छा हो सकता है। सद्भावना-संयम की चेतना रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि श्रद्धालु व्यक्ति भगवान के सामने अर्चना करता है, तो उसकी मनौती पूर्ण होती है। जैसे कल्पवृक्ष सबको देता है। सूर्य कमलों को खिलाता है। मेघ बरस कर सबकी प्यास बुझाता है। आचार्यप्रवर को मैं कल्पवृक्ष, सूर्य और मेघ के रूप में देख रही हूँ। सबको सुधापान करवाते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में समणी हंसप्रज्ञा जी, सभा अध्यक्ष पन्नालाल, तेयुप से नितेश जैन, महिला मंडल से हेमलता गेलड़ा, महिला मंडल द्वारा गीत, नंदलाल बाबा, अर्पित बोहरा (आयकर आयुक्त), कन्या मंडल, विधायिका- जोधपुर मनीषा पंवार, प्रसन्नचंद मेहरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। जलते दीप का विशेषांक पूनम मेहता ने पूज्यप्रवर को अर्पित किया। ‘दिल्ली में तेरापंथ का विकास’ भी पूज्यप्रवर को भेंट किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।