अर्हम्

अर्हम्

श्री तुलसी गुरुदेव से दीक्षाकर स्वीकार
आत्म साधना में लगे मुनिवर शांति कुमार।।1।।

गुरु भ्राता के साथ में बिचरे लंबे काल
नित प्रसन्न रहते सदा मुनिवर चंपालाल।।2।।

मुनि डूंगर चंपक हृदय बना लिया था स्थान
सेवा की दिल खोलकर तन-मन से अग्लान।।3।।

मुनिवर श्री नगराज की सेवा ससम्मान
स्मृति सभा में कर रहे मुनिवर के गुणगान।।4।।

महाश्रमण गुरुदेव की कृपा रही हर वक्त
श्रेयांस विमल प्रबोध से संत मिले त्रयभक्त।।5।।

अंतिम पावस में मिले संत जितेंद्र कुमार
जिनके वर सहयोग से हृदय हर्ष अनपार।।6।।

पौष कृष्ण पांचम निशा लिया है अंतिम श्वास
शासन में दृढ़ मन रहे बना दिया इतिहास।।7।।

कमल अमन नमि हृदय के हैं ये उत्तम भाव
भव सागर से शीघ्र ही तरे शांति कुमार नाव।।8।।