जैन धर्म की दो आध्यात्मिक धाराओं का मिलन

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जैन धर्म की दो आध्यात्मिक धाराओं का मिलन

चेन्नई।
साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी गुरु आज्ञा से साहुकारपेट, चेन्नई का चातुर्मास परिसंपन्न कर विहाररत हैं। वर्धमान जैन विहार धाम, अग्रहम में पधारे। विहार धाम में श्री जैन दिगंबर परंपरा के गुरुणी विज्ञश्री जी की शिष्याएँ आर्यिका माताजी ज्ञेयश्री जी के साथ आध्यात्मिक मिलन हुआ। दोनों ओर से सौहार्दपूर्ण अभिवादन के साथ काफी समय तक आध्यात्मिक चर्चा-परिचर्चा चली। आर्यिका माताजी ने जहाँ जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म की एक गुरु के आज्ञा, अनुशासन में चलने के साथ गुरु द्वारा संतों की तरह ही नहीं अपितु उससे ज्यादा भी शिक्षा, सेवा, साहित्य सृजन में साध्वियों को भी आदर भाव, सम्मान के साथ विकास के रास्ते पर अग्रसर करते हैं, उनकी सराहना की। श्रावक-श्राविकाओं का भी गुरु ही नहीं अपितु हर साधु- साध्वियों की सेवा में सजग, संलग्न रहते हैं। उसके लिए श्रावक समाज को साधुवाद दिया।
साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी ने कहा कि दिगंबर परंपरा का जैन साहित्यिक संरक्षण में बड़ा योगदान है। हमारे गुरु हमें श्वेतांबर साहित्य के साथ दिगंबर साहित्यों का तुलनात्मक अध्ययन करवाते हैं। स्वयं जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय में जैन धर्म और तुलनात्मक दर्शन में विशेष अध्ययन करवाया जाता है। हमारी साधना के रास्ते अलग-अलग हैं, लेकिन लक्ष्य हम सबका एक ही है। भगवान महावीर के बताए पाँच महाव्रतों की सम्यक् दृष्टि से पालना करते हुए स्वयं वीतरागता को प्राप्त करने की ओर गतिशील होना। इस अवसर पर चेन्नई समाज से गौतम सेठिया, वनिता सेठिया, दिलीप गेलड़ा, संजय संकलेचा इत्यादि श्रावक-श्राविका समाज उपस्थित था।