ज्ञानार्जन की दिशा में वर्धमान बने हमारा धर्मसंघ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञानार्जन की दिशा में वर्धमान बने हमारा धर्मसंघ : आचार्यश्री महाश्रमण

त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का भव्य शुभारंभ

बालोतरा, 9 जनवरी, 2023
औद्योगिक क्षेत्र बालोतरा, जहाँ हमारे परमपूज्य जयाचार्य ने वि0सं0 1921 की माघ शुक्ला सप्तमी को मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ किया था। वर्तमान में जयाचार्य के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी वर्धमान महोत्सव का आयोजन करने पधारे हुए हैं। वर्धमान स्कूल के वर्धमान समवसरण में वर्तमान में वर्धमान के सान्निध्य में वर्धमान महोत्सव का शुभारंभ वर्धमान के प्रतिनिधि के द्वारा नमस्कार महामंत्र के सम्मुच्चारण से हुआ। परम पावन ने मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में फरमाया कि अरिष्टनेमि ने वासुदेव को मानो मंगलकामना के रूप में कहाµज्ञान-दर्शन, चारित्र शांति और मुक्ति में वर्धमान रहो, वर्धमान बनो। मानो, दीक्षिप्त होने वाले के लिए एक मंगलभावना है।
हमारी दुनिया में मंगलकामना में भी लगता है कुछ तत्त्व होता है। आदमी स्वयं के लिए भी मंगलकामना कर सकता है और दूसरों के लिए भी मंगलकामना कर सकता है। अंतर्मन से दूसरों के लिए मंगलकामना की जाए यह मानो आदमी की उदारता है। आज त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का प्रारंभ हुआ है। मर्यादा महोत्सव से पूर्व पिछले कई वर्षों से इस महोत्सव की आयोजना होती है। एक बड़े समारोह की पृष्ठभूमि में एक छोटा समारोह आयोजित होता है। वर्धमान महोत्सव में वर्धमान शब्द हमारे परम श्रद्धेय परमात्मा भगवान महावीर का नाम है। जो अपने आपमें मंगल रूप में है। वर्धमान यानी बढ़ता हुआ। चातुर्मास के बाद हमारे यहाँ चारित्रात्माओं की संख्या वर्धमान हो जाती है। आज के दिन 45 संत 106 साध्वियाँ और 29 समणियाँ हैं। गत छापर चातुर्मास से संख्या वर्धमान है। शासन में साधु-साध्वियों की संख्या बढ़े ऐसी वर्धमानता हो। मुमुक्षुओं की संख्या भी वर्धमानता होती रहे। गुणवत्ता भी बढ़े।
ज्ञान में वर्धमानता हो। महाप्रज्ञ श्रुत साधना पाठ्यक्रम व कई संघीय पाठ्यक्रम है, जिनसे ज्ञान में वर्धमानता हो सकती है। रात्रि में मूर्तिपूजक संत भी तत्त्वज्ञान की चर्चा में आए थे। यह सारस्वत साधना है, इसमें पुरुषार्थ चाहिए। जो ज्ञान ग्रहण किया है, उसका चितारणा होता रहे। दसवेंआलियं मूल पूँजी है, इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करें। बाल साधु-साध्वियाँ इसे सहचर बनाकर रखे। ज्ञान की गहराई में जाने का प्रयास करें। भाषण शैली अच्छी हो। ज्ञान और अनुभव भाषण की आत्मा है। ज्ञान का विकास हमारे धर्मसंघ में वर्धमान रहे यह काम्य है। साधु-साध्वियों व समणियों को प्रतिदिन एवं साप्ताहिक दसवेंआलियं का स्वाध्याय करने का (यथासंभव) संकलप करवाए। उत्तराध्ययन के कई अध्ययन की याद करने की प्रेरणा दिलवाई।
श्रावक समाज को भी भिक्षु विचार दर्शन एवं तेरापंथ प्रबोध का बार-बार स्वाध्याय करने का प्रयास करें, गहराई में जाएँ, वर्धमानता रहे। पूज्यप्रवर के स्वागत में समणीवृंद द्वारा गीत, सिवांची-मालाणी समणीवृंद व मुमुक्षु बहनों द्वारा गीत, साध्वी विजयप्रभा जी, साध्वी जिनबाला जी, साध्वी शताब्दीप्रभा जी, साध्वी कमलप्रभा जी व साध्वी जिनबाला जी के सिंघाड़े की साध्वियों ने गीत, मुमुक्षु प्रियंका ओस्तवाल, साध्वी प्रमोदश्री जी, साध्वी रतिप्रभा जी समूह गीत, समणी संचितप्रज्ञा जी, मुमुक्षु दीप्ति वेद मूथा, मुमुक्षु रक्षा ओस्तवाल, महिला मंडल अध्यक्ष निर्मला संकलेचा, कन्या मंडल समूह गीत, तेयुप ने समूह गीत से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। टीना श्रीमाल ने पूज्यप्रवर से 25 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कर्मों के उदय से होने वाले कर्मफलों को विस्तार से समझाया।