आत्मकल्याण के लिए सच्चाई की साधना करना जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण
जसोल, 7 जनवरी, 2023
पूज्यप्रवर का जसोल प्रवास का दूसरा दिन। तीर्थंकरतुल्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अठारह पाप स्थान-पाप बताए गए हैं। इस संदर्भ में तीन चीजें धातव्य हैंµअतीत, वर्तमान और भविष्य। अठारह पापों के संदर्भ में इन तीनों को तत्त्वज्ञान के संदर्भ में बताने का प्रयास कर रहा हूँ। पहला पाप हैµप्राणातिपात। तीन चीजें हैंµएक प्राणातिपात पाप स्थान। दूसरा प्राणातिपात पाप की प्रवृत्ति और तीसरा प्राणातिपात पाप का बंध। हमारे अतीत में जो मोहनीय कर्म बंधा हुआ है, वो जीव को प्रेरणा देता है। वो उदय में आकर प्रेरणा देता है, तब वर्तमान में जीव प्राणातिपात की प्रवृत्ति करता है। ये आश्रव है, जो वर्तमान में हो रहा है। प्रवृत्ति से फिर कर्म का बंध हो रहा है, वो फिर भविष्य के लिए उदय में आने के लिए कर्म का बंध हो रहा है।
इसी प्रकार सारे पाप कर्मों का अतीत, वर्तमान और भविष्य का ऐसे संबंध जुड़ता है। पिछले बंधे कर्म का उदय होने से प्रेरणा मिलती है और प्रेरणा मिलने से जीव पाप कर्म का बंध आगे के लिए करता है। आदमी मृषावाद बोलता है, उसके चार कारण बताए गए हैंµक्रोध, लोभ, भय और हास्य। शास्त्र का सूत्र हैµसत्य लोक में सारभूत है। आत्मकल्याण के लिए सच्चाई का महत्त्व है। सच्चाई में हम गहराई से देखें तो कौन-सा वाक्य मेरा पूर्ण सच्चाई वाला हो सकता है, उस ओर ध्यान जाए तो मृषावाद की साधना उच्च कोटि की हो सकती है।
हर सच्ची बात को कहना जरूरी नहीं है। झूठ नहीं बोलना जरूरी है। मृषावाद पुष्प रहे इसके लिए भाव शुद्धि जरूरी है। उपयोगिता हो तो बोलो। कषाय की मंदता हो। साधु भाषा समिति का ध्यान रखे। इन पर साधु ध्यान दे तो मृषावाद की साधना अच्छी हो सकती है। सावद्य भाषा से बचा जा सकता है। जसोल से अनेक चारित्रात्माएँ व समणियाँ हैं। मैंने 2012 के जसोल चातुर्मास को ऐतिहासिक दुर्लभ कहा था, उसका अब खुलासा है कि उस चातुर्मास में हमें साध्वीवर्या मिली थी। चार वर्ष ही दीक्षा लिए हुए थे और साध्वीवर्या के रूप में सामने आ गई। इतनी कम उम्र में इतने उच्च स्थान पर आने वाली संभवतः तेरापंथ में आचार्य भिक्षु के सिवाय कोई आ गए हो।
दूसरी बात मैंने कही थी कि सिद्ध चातुर्मास है। उस समय दो साध्वीजी के संथारे सीजे थे। साध्वी भीखांजी और साध्वी वैराग्यश्री जी। इस बार तो और विशेष बात हो गई कि दंपति के संथारा। आज तक आगे इतिहास में देखने-सुनने, जानने में नहीं आया है। पुखराजजी के तो पहले से था। उनकी धर्मपत्नी गुलाबबाई को मैंने कल संथारा पचखाया था। वर्तमान में धर्मसंघ में 550 के करीब साध्वियाँ हैं। वर्तमान में साध्वियों में सर्वोच्च स्थान पर तो साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी हैं। नंबर दो पर साध्वीवर्या हैं। दोनों खूब सेवा देती रहें। चित्त समाधि रहे। कुछ-कुछ साधु-साध्वियों का विशेष योगदान प्राप्त हो रहा है। गुरुकुलवास में भी और न्यारा में भी।
गुरुकुलवास में जसोल के संत कोई-कोई अच्छी सेवा दे रहे हैं, उनको नजर बिलकुल न लगे। उनमें योग्यता-प्रतिभा है। इतने कार्य कर्मठता से कार्य कर रहे हैं। वो अपने आप संभालते रहते हैं। सिवांची-मालाणी से देखें तो कई ऐसी चारित्रात्माएँ गुरुकुलवास में सेवा देने में कर्मठ हैं। न्यारा में भी हैं। जसोल अच्छा क्षेत्र है। ज्ञानशाला ने भी कल अच्छा कार्यक्रम किया था। तीन संतानें धर्मसंघ को दी। महादानी श्रावक सोहनलाल सालेचा का विशेष योगदान रहा। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भौतिक पदार्थों से सुख तो मिल सकता है, पर वह सुख क्षणिक है। हमें स्थायी सुख प्राप्त करना है, उसके लिए ही हमने उस अध्यात्म के मार्ग को स्वीकार किया है। हमें भीतरी जगत में प्रवेश करना होगा। भीतर में प्रवेश के लिए हमें प्रेक्षाध्यान का मार्ग अपनाना पड़ेगा। साध्वी स्थितप्रभा जी की स्मृति सभा पूज्यप्रवर ने साध्वी स्थितप्रभा जी का जीवन परिचय संक्षेप में बताते हुए फरमाया कि वे-समण श्रेणी में प्रथम नंबर की समणी थी। समण श्रेणी में पीएच0डी0 करने वाली भी प्रथम समणी थी। गंभीर स्थिति के कारण कुछ दिन पहले साध्वी कनकश्री जी के हाथों दीक्षा हुई थी और संथारा भी किया था। पूज्यप्रवर ने मध्यस्थ भावना से चार लोगस्स का ध्यान करवाया।
मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी, समणी नियोजिका अमलप्रज्ञा जी, समणी कुसुमप्रज्ञा जी, समणी मधुरप्रज्ञा जी, समणी अक्षयप्रज्ञा जी, समणी प्रतिभाप्रज्ञा जी, समणी मृदुप्रज्ञा जी, समणी पुण्यप्रज्ञा जी, समणी निर्मलप्रज्ञा जी, समणीवृंद समूह गीत, साध्वी युक्तिप्रभा जी, मुनि दिनेश कुमार जी ने भी अपनी श्रद्धाभावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के स्वागत में ग्राम पंचायत सरपंच ईश्वर सिंह चौहान, अणुव्रत समिति से अशोक कोठारी आदि ने अणुव्रत संकल्प-पत्र, मुमुक्षु आयुषी, मुमुक्षु वीनु ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुनि कीर्तिकुमार जी एवं मुनि विश्रुतकुमार जी ने गुरुवर के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की।कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।