आज्ञा आराधक - स्थितप्रज्ञा
समणी सुमनप्रज्ञा
प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अनेक रूपों से जाना जाता है। किसी की पहचान रूप से, किसी की धन से, किसी की प्रतिभा व डिग्री से। प्रत्येक व्यक्ति की पहचान अलग-अलग होती है। ये सब लौकिक पहचान है। लोकोत्तर पहचान के रूप अलग-अलग हैं, लोकोत्तर पहचान गुणों से होती है।“ समणी स्थितप्रज्ञा जी, जिन्हें हम बड़े बावजी के रूप में बुलाते थे। आपका हँसता चेहरा जीवनरूपी बाध्य पैकिंग के समान था, आपका हृदय शोरूम के साइन बोर्ड सदृश था। आपकी अंतरंग आत्मा, तप, संयम, स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा, सकारात्मक सोच के आनंद से आनंदित था तथा ैमस.िकमचमदकमदज थे। आचार-विचार से आकर्षक व प्रभावक व्यक्तित्व से आपने हमेशा प्रभावित किया। आप वाणी से समृद्ध थी। बड़ों को सम्मान देते व छोटो को ‘आप’ से ही संबोधित करके बुलाती थी, आपका जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है।
ऐसा प्रभावशाली, वर्चस्वी, व्यक्तित्व समण श्रेणी से विलीन हो गया। आपकी आत्मा उत्तरोत्तर विकास करती हुई मोक्ष को प्राप्त करे। आचार में स्थित, विचार में स्थित, व्यवहार में स्थित, स्थितप्रज्ञा समण श्रेणी में जीवन कुर्बान, आन-बान-शानµस्थितप्रज्ञा विनतभाव से श्रद्धा वंदन स्मरण करे अधः हम सब, स्मृतियों में अंकित तब जीवन, गुरु आज्ञा धारक-स्थितप्रज्ञा।