अर्हम्

अर्हम्

समणी स्थितप्रज्ञा जी को समण श्रेणी की प्रथम समणी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आपका समण श्रेणी का बयालीस वर्ष का कालमान विविधताओं को लिए हुए था। कई क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय-तुलसी अध्यात्म नीडम् आदि। आप बचपन से ही धुन के धनी थे। जिस काम को हाथ में लेते, लगन के साथ पूरा करके विश्राम लेते। आपका स्वावलंबन, सरलता, कृतज्ञता, आज्ञानिष्ठा व बड़ों के प्रति आदर भाव आदि गुण न केवल प्रशंसनीय हैं बल्कि अनुकरणीय भी है। आपकी स्वाध्यायप्रियता और मंत्र साधना भी विशिष्ट थी।
आप मनोबल के धनी थे। कैसी भी परिस्थिति आई किंतु आपने मनोबल और धृतिबल के साथ हर घटना को सहज बनाने का प्रयत्न किया। आपका जीवन प्रयोगधर्मी रहा है। बहुत बार शारीरिक अस्वस्थता में भी दवाई न लेकर विभिन्न प्रयोगों से अपना उपचार कर लेती। समण श्रेणी के सहवास के साथ आपसे स्नेह पाया तो आप सम्मान भी बहुत देती थी। साथ जीए पल आज तो मात्र स्मृतियाँ बनकर रह गए हैं। आपसे जो अपनापन मिला उसके प्रति अहोभाव।