श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

समणी चैतन्यप्रज्ञा, समणी हिमप्रज्ञा (मायामी, अमेरिका)
आदरणीय नियोजिका जी एवं अन्य माध्यमों से ज्ञात हुआ है कि समण श्रेणी की प्रथम समणी श्री स्थितप्रज्ञाजी का आकस्मिक रूप से देवलोक गमन हो गया। समण श्रेणी की प्रथम दीक्षित समणी का नाम स्थितप्रज्ञा रखने के पीछे परमपूज्य गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का चिंतन संभवतः यह रहा होगा कि उनके नाम के साथ यह श्रेणी स्थिर बने। समणी श्री स्थितप्रज्ञाजी ने अपने नाम को सार्थक कर पूज्यवरों की उस परिकल्पना को सत्यापित किया।
सर्वज्येष्ठा समणी श्री स्थितप्रज्ञा जी का जीवन आत्मनिष्ठा, गुरुनिष्ठा, आज्ञानिष्ठा और मर्यादानिष्ठा का अनूठा उदाहरण था। व्यवस्था और व्यवस्थापक के प्रति गहरा सम्मान हम सभी अवम रात्निक समणीजी के लिए जीवंत प्रेरणा थी। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय की प्रथम एम0ए0, नेट, पीएच0डी0 एवं विभागाध्यक्षा बनने का गौरव प्राप्त किया था। जीवन विज्ञान की विभागाध्यक्षा बनकर उसका मार्गदर्शन ही नहीं किया अपितु उसे गति प्रदान की और उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया।
वे ध्यान और मंत्रों की विशिष्ट साधिका थी तथा अनेक विषयों पर अधिकार रखती थी। उन्होंने शोध और संपादन के क्षेत्र में भी अनेक कार्य किए। आचार्य महाप्रज्ञ साहित्य और प्रेक्षा साहित्य के संपादन में उनका विशिष्ट योगदान रहा है। प्रेक्षा पत्रिका का अनेक वर्षों तक संपादन कर उसे प्रतिष्ठित करने में भी उनका विशिष्ट योगदान रहा है। सम्यग् दर्शन, ज्ञान और आचार के क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त रत्नाधिक समणी श्री स्थितप्रज्ञा जी का आकस्मिक देवलोकगमन निश्चित ही हम सबके लिए चौंकाने वाली घटना है। परमपूज्य आचार्यवर की अनुज्ञा से वंदनीया बहुश्रुत साध्वी कनकश्रीजी महासतियाँ जी के उपपात में रहकर तथा संथारापूर्वक श्रेणी आरोहण कर उन्होंने अपने जन्म, जीवन और मृत्यु को सार्थक ही नहीं सफल बनाया है।
पूज्यवर की अनुकंपा से रत्नाधिक समणी श्री स्थितप्रज्ञा जी की पवित्र आत्मा निरंतर उत्तरोत्तर आध्यात्मिक उन्नयन करते हुए शीघ्र मोक्ष प्राप्त करे। दिवंगत आत्मा के प्रति हम भावपूर्ण श्रद्धांजलि व्यक्त करते हैं।