सेवा सजे हाथ
समणी कांतिप्रज्ञा
सन् 1989 में मेरी समण दीक्षा हुई। एक माह के पश्चात् अचानक मैं अस्वस्थ हो गई। मुझे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। परिचर्या हेतु गुरुदेव तुलसी ने समणी स्थितप्रज्ञा जी आदि तीन समणी जी को नियुक्त किया। मेरे अपेन्डिक्स का ऑपरेशन हुआ। एक दिन अचानक मेरा जी घबराने लगा, मैंने इशारा किया कि मुझे उल्टी होगी। दोनों समणीजी समाधि-पात्र को खोजने लगे। मैं उल्टी के वेग को रोक नहीं सकी। समणी स्थितप्रज्ञा जी ने दोनों हाथ मेरे सामने कर दिए। मुझे उल्टी हो गई। मैंने देखा उनकी पूरी अंजली उल्टी से भर गई, मेरी आँखों में पानी आ गया। समणी स्थितप्रज्ञा जी ने वात्सल्य से मेरी ओर देखा और कहा घबराओ नहीं। ये हाथ धोने से साफ हो जाएँगे। आप बिलकुल भी चिंता नहीं करो। सेवा से सजे वे हाथ समण श्रेणी की ख्यात बन चुके हैं। आने वाले समय में शैक्ष सेवा के संदर्भ में हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
एक दूसरा प्रसंग है-मुझे तेज बुखार तथा उल्टी हो रही थी। डॉक्टर ने कहा-इन्हें पहले भोजन कराएँ फिर टेबलेट देनी है। मैंने कहा-आहार की बिलकुल भी रुचि नहीं है, पहले टेबलेट दे दीजिए। थोड़ी देर में ठीक होने पर आहार करूँगी। उन्होंने कहा-मैं आहार ले आई हूँ, थोड़ा-सा खा लो। उन्होंने एक-एक कोर हाथ से देकर आहार करवाया और फिर टेबलेट दी। बीमारी के समय सहृदयतापूर्ण वात्सल्य भाव आज भी मेरी स्मृति पटल पर अंकित है। सेवा की अनमोल प्रेरणा है।