राग मायन-मायन मुंडेर पे!
समण श्रेणी की पहली समणी, स्थितप्रज्ञा जी कहाए।
गुरु किरपा से बनी साध्वी, स्थितप्रभा कहलाए।।
मन मजबूती न्यारी थी, कभी नहीं वो हारी थी।
संकल्पबली वो आत्मबली थी, सिंहवृत्ति से जीती,
अपनी मस्ती में जीना, वो हँसते-खिलते रहती,
मृत्यु का उन्हें भय न सताया, ना कहीं घबरायी।
गुरु किरपा----
स्वावलंबी जीवन था उनका, बहती दिल में करुणा,
समता से सब सही वेदना, बहा शांति का झरणा,
स्मृतियाँ केवल शेष रही हैं, याद हमें वो आएँ।
गुरु किरपा----
कितनों को पीएच0डी0 करवाई, थी स्वाध्यायी, ज्ञानी।
प्रेक्षाध्यान में रुचि देखी, बनी वो मौनी, ध्यानी।
गुरुनिष्ठा, संघनिष्ठा निराली, श्रद्धा शीश झुकाएँ।।
गुरु किरपा----