सेवा से खेवा - साध्वी स्थितप्रभाजी

सेवा से खेवा - साध्वी स्थितप्रभाजी

* समण श्रेणी की प्रथम सदस्याµरत्नाधिक समणी स्थितप्रज्ञा जीµसाध्वी स्थितप्रभा का रूप धारण कर त्वरता से विलीन हो गईं। वे चली गईं? विश्वास नहीं हो रहा। भाग्यशाली थीं वो, तेरापंथ के तीन-तीन आचार्यों का पोषण प्राप्त कर स्वयं को समृद्ध बनाया था उन्होंने। समण श्रेणी में उन्हें ‘बापजी’ कहा जाता था।

* आज उनका चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। पिता का बीज पिता की तरह उसी वार, उसी तिथि को अपनी जीवन यात्रा को विराम दे गईं। क्यों न हो ऐसा अपने पिता के स्वभाव से कई बातें थीं उनके स्वभाव में। ऐसा लग रहा है। संयम और संथारे के साथ अपनी देह का विसर्जन कर दिया। पुण्यशालिनी थीं वो!
व समण श्रेणी में उनका जीवन कठोर परिश्रमी, प्रयोगधर्मा, बच्चे जैसा आग्रही मन और नियमों की पकड़ के रूप में याद रहेगा। अपने अथक श्रम से वे जैन विश्व भारती संस्थान से जुड़ी, शोध कार्य किया और अनेक शोध-विद्यार्थियों के गाइड रूप में रहे। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की एक-दो पुस्तकों का संपादन भी किया थाµऐसा मेरे स्मरण में है।
* अनेक तप, जप और ध्यान के प्रयोग भी जीवन के पूर्वार्द्ध में उन्होंने किए थे। प्राणायाम की साधना उनकी काफी अच्छी थी। मर्यादा महोत्सव के समय-रात्रि को वे समणी जी को आमंत्रित कर प्राणायाम के प्रयोग से कुर्सी/छोटा पट्ट जमीन से ऊपर उठा दिया करते थे।

* वे कभी-कभी हठी हो जाती थीं। लेकिन उनके हठ में शठता नहीं बल्कि बालक-सा भोलापन झलकता था। कभी-कभी लाडनूं प्रवास में सायं अर्हत् वंदना के पश्चात् आदरणीया समणी मधुरप्रज्ञा जी एवं खासकर आदरणीया समणी कुसुमप्रज्ञा जी के साथ स्वस्थ नोक-झोंक वाले संवाद उनका वास्तविक परिचय देते थे।

* यात्रा से लौटकर जब भी उनके पास वंदना, खमतखामणा एवं सुखसाता पूछने के लिए जाते, वे विस्तार से अपनी सेहत के बारे में बताते।

* नियमों के प्रति पकड़ कभी-कभी अखरने वाली भी हो जाती थी। कभी-कभी अनावश्यक भी लगती थी, लेकिन ये उनकी अपनी विशेषता थी। नियोजिका पद पर जो भी नियुक्त किया जाता वे उनके प्रति हमेशा आदरभाव की ऊँचाइयों पर रहते।

* समण दीक्षा की अनुमति से लेकर स्वास्थ्य तक की उनकी परीक्षाएँ कभी उनके मजबूत मन पर हावी नहीं हो पाईं।

* सौभाग्य तो देखो उनकाµगईं तो थीं शासन गौरव नातिले साध्वीश्री कनकश्री जी की सेवा के लिए और झटपट अपना खेवा पार कर लिया उन्हीं के हाथों से। ‘सेवा से मेवा’ की कहावत तो सुनी है पर ‘सेवा से खेवा’ वाली नई कहावत उन्होंने गढ़ दी। नमन इस आत्मा को, स्मरण इस व्यक्तित्व का, कामनाµहर जन्म में आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त करें---।