अर्हम्

अर्हम्

समणी भावितप्रज्ञा
जन्म लेते वक्त सभी व्यक्ति कोरे कागज की तरह होते हैं पर जाते वक्त उस कोरे कागज पर अपनी कहानी लिखकर जाते हैं। परिणामतः वह कहानी दूसरों के लिए प्रेरक बन जाती है। समण श्रेणी की प्रथम समणी, समणी स्थितप्रज्ञा जी जो श्रेणी के लिए नींव का पत्थर थी। उनकी जीवन कहानी से हमें कई प्रेरणाएँ मिलती हैं। मुझे सम्माननीय साध्वी स्थितप्रज्ञा जी के साथ यात्रा करने का सुअवसर मिला, यह मेरा अपना सौभाग्य था। जब हमने चेन्नई सेंटर की यात्रा की, उन्होंने मुझे हर दृष्टि से विकास की दिशा में आगे बढ़ाया। उन्होंने मुझे संकल्पबद्ध किया कि इस दक्षिण यात्रा में गणाधिपति गुरुदेव तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ जी की दृष्टि के अनुरूप म्दहसपेी में प्रगति करनी है। रोटरी क्लब, लोगस्स क्लब, स्कूल, कॉलेज, मठ आदि उन्हीं पर भी कार्यक्रम होता तो आप प्रेरणा-दीप बनकर मेरे उत्साह को शतगुणित करती, यही वजह थी कि गुरुकृपा व बड़ों की शुभ दृष्टि से प्रोग्रामों में म्दहसपेी में, मैं अपने विचारों की प्रस्तुति दे पाती।
मेरे जीवन विकास व साधना में आपका सहयोग प्रशंसनीय रहा। आपने अपने जीवन में साधना के विभिन्न प्रयोग किए-मार्केपडिया, प्रेक्षाध्यान की विशेष साधना, मंत्र, जप, स्वाध्याय, संपादन आदि। आज जागरूक, अप्रमत्त रहने के साथ-साथ बहुत ही सरल, सहज व प्रसन्न रहती थी। वे उठा करती थी-मेरे निश्चित कर्मों का उदय है, कर्म किए हैं तो भोगने पड़ेंगे। शारीरिक वेदना में अपने क्षमता-भाव को बनाए रखने का प्रयास करती। वे पंचनिष्ठा-आलनिष्ठा, आज्ञानिष्ठा, गुरुनिष्ठा, अम्बारनिष्ठा, मर्यादानिष्ठा की उपासिका थी। यूँ कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी-
अपने प्रति, गुरु के प्रति और लक्ष्य के हेतु, 
सहज समर्पण भाव है स्वयं सिद्धि का सेतु।
मेरे परम उपकारी, प्रोत्साहनदाता, प्रेरणादीप साध्वी स्थितप्रज्ञाजी की पवित्र आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि, आध्यात्मिक मंगलकामना।