चारित्र निष्ठा

चारित्र निष्ठा

साध्वी सविताश्री ‘लाडनूं’
समणी स्थितप्रज्ञा जी के अस्वस्थता के दौरान अनेक बार दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके मन चारित्र के प्रति प्रबल भावना थी। बड़े अहोभाव के साथ कहती कि वह दिन धन्य होगा जब मैं भी चारित्र रत्न को प्राप्त होऊँगी। वय में हम छोटे थे लेकिन उनका वंदना व्यवहार प्रशस्थ था। दिल के बड़े उदार थे बहुत बार कहते गोचरी पधार रहे हो तो अमुक स्थान पर ‘जोगवायी’ है। लाडनूं निवासिनी होने से हमारे ज्ञातिजनों के गोचरी आदि पधारना, दर्शन देना आदि उनकी जागरूकता का परिणाम है। चारित्र की भावना अंत समय में फलवती बनी, वह भी संथारापूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। आध्यात्मिक प्रगति की मंगलकामना।