दृढ़-संकल्पी समणी स्थितप्रज्ञा

दृढ़-संकल्पी समणी स्थितप्रज्ञा

समणी स्थितप्रज्ञा जी का जीवन स्वावलंबन का जीता-जागता उदाहरण था। आप दृढ़-संकल्पी थी। जो सोच लिया, तो रात को जागकर भी उसको पूरा करती। आपकी अपनी व्यवस्थित दिनचर्या थी, अधिकांश समय मंत्र-जप में बीतता था। आपकी मंत्र साधना में बल भी था। ऐसे लगता है कई मंत्र आपने साध लिए थे। ‘योग पडिया’ जैसी कठोर पडिया आपने पूरी की। आपने पीएच0डी0 के साथ चार विषय में एम0ए0 करके कीर्तिमान स्थापित किया। जो काम स्वयं कर सकते, उसे आप दूसरे से करवाना नहीं चाहती थी। लाडनूं में अथवा मर्यादा महोत्सव के अवसर पर यदा-कदा आपके पास बैठने का अवसर मिला।
लगता है आपके जीवन में वेदनीय कर्म का प्रबल उदय था। आपने समता भाव से वेदना को सहन किया। स्थितप्रज्ञा से साध्वी स्थितप्रभा बनी, अनशन स्वीकार किया और शासन गौरव साध्वी कनकश्री जी की सन्निधि में अपना काम सिद्ध कर लिया। आपकी आत्मा आध्यात्मिक विकास को प्राप्त करती हुई शीघ्र मंजिल को प्राप्त करे। ऐसी मंगलकामना करते हुए श्रद्धासिक्त भावों से श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।

समण श्रेणी की प्रथम पंक्ति की प्रथम सदस्या तुम कहलाई।
मर्यादानिष्ठा गुरुभक्ति सीख सदा जीवन से पाई।।

श्रमनिष्ठा पहचान बनाकर
स्वावलंबन पाठ पढ़ाया।
मंत्र जाप की कुशल साधिका
बनकर अंतर ज्योत जलाई।।

जो भी धारा पार उतारा, दृढ़ संकल्प शक्ति के द्वारा।
घोर वेदना में भी तुमने मंत्र जाप की अलख जगाई।।

स्नेह मिला वात्सल्य मिला
और मिला सदा अपनापन भाव।
करूँ समर्पित श्रद्धांजलि
धरकर उर में श्रद्धा का भाव।।