अर्हम्
मुझे दीक्षा लिए हुए 11 साल हो गए। मुझे प्रथम बार समणी स्थितप्रज्ञा जी की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। समणी स्थितप्रज्ञा जी वैसे स्वावलंबी थी और अनुशासनप्रिय समणीजी थी। वे इस उम्र में भी अपना कार्य स्वयं करती थी। जप-स्वाध्याय के प्रति पूर्ण जागरूक थी। हमें अपना परम सौभाग्य है कि मुझे साध्वीवर्याजी ने इनकी सेवा में नियुक्त किया। मैं भी अपने जीवन में उनके गुणों को आत्मसात करूँ, यही इच्छा है।