साध्वी स्थितप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
समणी निर्वाणप्रज्ञा
व्यक्ति जन्म लेता है, जीवन जीता है और संसार से विदा हो जाता है। जन्म और मृत्यु उनकी सफल व सार्थक होती है जो संयम व साधना का जीवन जीता है। स्थितप्रज्ञा जी समणीजी को हमने नजदीकी से देखा है। उनकी तप, जप व ध्यान की साधना निरंतर गतिमान रही। उन्होंने साधना के और भी अनेक प्रयोग किए। उन्हें विलक्षण दीक्षा के प्रथम सदस्य बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। उनकी संकल्पशक्ति भी बेजोड़ थी। उन्होंने अपने जीवन में जब-जब भी कोई संकल्प स्वीकार किया, उसे पूर्ण करके ही विश्राम लेती थी।
मुझे स्मृति में आ रहा है, जब मैं उपासिका में थी तब उन्होंने रात्रि जागरण का संकल्प किया था। इसलिए मुझे रात्रि में उठाकर पढ़ाते, मेरी ध्यन साधना व अध्ययन में उनका पूर्ण सहयोग मिला। मैं उनकी अग्रिम आध्यात्मिक यात्रा की मंगलकामना करती हूँ।