फौलादी आत्मविश्वास की नजीर समणी स्थितप्रज्ञा

फौलादी आत्मविश्वास की नजीर समणी स्थितप्रज्ञा

साध्वी सरलयशा

फौलादी संकल्प की स्वामी समणी स्थितप्रज्ञा समण श्रेणी के इतिहास में मील का पत्थर बन दृश्य जगत से अलविदा हो गई। उनका जीवन विशेषताओं का समवाय था। ऋःसत्व मनोबल, सहिष्णुता, लक्ष्यवेंधि जुनून, अप्रमत्तता, पुरुषार्थ परायणता, सजगता, स्नेहिल व्यवहार के साथ कोहिनूर की भाँति चमकता उनका गुण था-फौलादी आत्मविश्वास। हिलेरी जब अपने आत्मविश्वास और धैर्य के बलबूते पर एवरेस्ट पर चढ़ सकता है तो फौलादी इरादों वाली सरिता जिंदगी में आने वाली बाधाओं की पटरियों को क्यों नहीं लाँघ सकती।
दृढ़ आत्मविश्वास की बदौलत उन्होंने जीवन में हर वांछित मंजिल को हासिल किया। फिर चाहे वैराग्यवस्था में दीक्षा की अनुमति पाने की जद्दोजहद हो या जीवन विकास का पायदान। अथवा जीवन की अंतिम श्वास संथारे में संयम पर्याय अवस्था में परिसंपन्न करने की भावना हो। यों कहा जा सकता है आत्मविश्वास के सहारे उनका हर असंभव संभव में तब्दील होता नजर आया। उनका हर सपना कृतार्थ बना। मुझे उनके साथ समण श्रेणी में सह दीक्षित होने का सौभाग्य मिला। मैंने उनकी जीवनगत क्रिया-कलापों को नजदीकी से देखा। वो बड़े धुनी थे। जो ठान लेते उसे पूरा करके ही दम लेते। फिर चाहे रात हो या प्रभात। उन्होंने अपने भीतर छिपी आत्मशक्तियों को पहचाना। पा0शि0 संस्था में उनकी पहचान ध्यान साधिका के रूप में होने लगी। तुलसी अध्यात्म नीडम् की योगिक गतिविधियों का समणीवस्था में मार्गदर्शन किया।
प्रेक्षाध्यान पत्रिका का वर्षों तक सह-संपादन भी किया। मुझे अच्छी तरह याद है प्रेक्षाध्यान पत्रिका का सह-संपादन चार्ज उन्होंने गुरुदृष्टि से मुझे सौंपा। ढेर सारे कागजाद सौंपते हुए उन्होंने कहा-”आपको जो काम में आए, काम में लेना अन्यथा हटा देना।“ उनकी इस हिदायत ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उन्होंने कोई अपना इरादा मुझ पर थोपा नहीं, स्वतंत्र चिंतन का आयाम दिया। वो ऊपर से जितने सख्त नजर आते, भीतर से उतने ही कोमल थे। अपने प्रभाव से उन्होंने समणी वर्ग की अंतरंग परिषद में ‘बापजी’ नाम से अपनी पहचान बनाई। वे मात्र बड़े ही नहीं थे उनमें बड़प्पन के अनेक गुण विकसित थे। मैंने अनुभव किया के हर एक नियोजिका को न केवल सम्मान ही देते अपितु विनम्र व्यवहार का समाचरण भी करती थी।
2022 में शासनमाता अलंकरण के समय अस्वस्थ चल रहे थे। मैं उनसे मुलाकात करने गौतम ज्ञानशाला गई। उन्होंने सहदीक्षित के मिलन की खुशी जाहिर की। कुछ दिली बातें भी की। सभी बातों का निचोड़ था वो जिस अवस्था में थे बड़े पाॅजेटिव थे। मुझे भी सदैव पाॅजेटिव रहने की प्रेरणा मिली। फिर से, आत्मविश्वास जीवन की बेहतरीन ताकत है। यह उनका प्रयोग पक्ष भी बना। ‘मोयपडिमा’ का अनुष्ठान करने वाली वह एकमात्र समणी थी। उनके आत्मबल का सबूत है ज्येष्ठ महीने में अनुष्ठान का संचरण। उन्होंने अपने जीवन से कवि की पंक्तियों को प्राणवान् किया-
फौलादी है सीने अपने, फौलादी हैं बाहें।
हम चाहें तो पैदा कर दें, चट्टानों में राहें।।
समण श्रेणी के नाम उन्होंने वसीयतनामा से बतौर आत्मविश्वास का प्राणवान टाॅनिक अपने जीवन से छोड़ा है। समण श्रेणी के प्रथम छः सदस्यों की पंक्ति में पहला नाम समणी स्थितप्रज्ञा और छेला नाम समणी विशुद्धप्रज्ञा है। दोनों ही चंदेरी के चमकते सितारे साबित हुए। स्वनाम धन्य दोनों ही विदेह हो गए। समण श्रेणी से इतिहास में वो सदा ध्रुवतारे की नाई चमकते रहेंगे। दिवंगत आत्मा के शाश्वत मंजिल पर आरोहण की मंगलकामना।