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शासनश्री साध्वी गुणश्री जी का देवलोकगमन
बीदासर
शासनश्री साध्वी गुणश्री जी का जन्म लाडनूं के चौरड़िया परिवार में विक्रम संवत् 1990 बसंत पंचमी के दिन हुआ। आपके संसारपक्षीय माता का नाम मोहनां देवी एवं पिता का नाम माणकचंद था। संसारपक्षीय दादीजी एवं साध्वी संतोंकाजी की प्रेरणा से हृदय में वैराग्य का बीज अंकुर हुआ एवं विक्रम संवत् 2005 को पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश लिया। आपकी दीक्षा 17 वर्ष की आयु में हिसार में विक्रम संवत् 2007 पौष शुक्ला सप्तमी को आचार्य तुलसी के करकमलों द्वारा हुई। दीक्षा लेने के पश्चात साध्वी मोहनांजी, साध्वी राजांजी, साध्वी किस्तुरांजी के सान्निध्य में आंतरिक एवं बाह्य विकास किया। इसके साथ ही लिपि कला के क्षेत्र में भी आप कार्यकुशल थी। पात्रियाँ, प्याले, टॉपसी पर जाल आदि किए। सुंदर अक्षर आपकी पहचान थी। साध्वी गुणश्री जी न केवल कला के क्षेत्र में बल्कि सेवा के क्षेत्र में भी हमेशा आगे रहे। अपने जीवन में साध्वी मोहनांजी-डीडवाना, साध्वी चुनांजी-डीडवाना, साध्वी राजांजी-गंगाशहर, साध्वी किस्तुरांजी-सरदारशहर, साध्वी सुगनांजी-गंगाशहर की पूर्ण मनोयोग से सेवा की। कंठस्थ ज्ञान के क्षेत्र में दसवेंकालिक सूत्र, आवश्यक सूत्र, कालू कौमुदी, जैन सिद्धांत दीपिका, सिंदूर प्रकरम, शांत सुधारस भावना, भक्तामर स्त्रोत, कर्तव्य षटत्रिशिंका, कल्याण मंदिर, अष्टकम, आलंबन सूत्र, अग्निपरीक्षा, मदन मिलन, करमचंद केसर आदि व्याख्यान एवं गीतिका कंठस्थ किए।
आप विक्रम संवत् 2047 से 2078 तक लगभग 35 वर्षों से बीदासर समाधि केंद्र में स्थिर वास में रही। आपमें सहजता, सरलता, स्वावलंबिता, प्रमोद भावना बेजोड़ थी। सन् 2015 में असाध्य रोग से ग्रसित होने के बाद भी प्रसन्नता और समता भाव धारण किए हुए रही। आपको सन् 2017 में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने ‘शासनश्री’ अलंकरण प्रदान किया। बीदासर समाधि केंद्र में जीवन के अंतिम समय में हृदय रोग से ग्रसित होने के पश्चात जागरूकतापूर्वक सभी से खमतखामणा कर सागारी त्याग-प्रत्याख्यान कर 5 अगस्त, 2021 को मध्याह्न में देवलोक गमन किया।