सम्यक् ज्ञाान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र हो वर्धमान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक् ज्ञाान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र हो वर्धमान: आचार्यश्री महाश्रमण

बालोतरा, 10 जनवरी, 2023
बालोतरा में त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव के द्वितीय दिन। अध्यात्म साधना के धनी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि वर्धमानता अभिष्ट बहुत लोगों को हो सकती है, परंतु वर्धमान होने के लिए अभिष्ट होना मात्र पर्याप्त नहीं है। अभिष्ट होने के साथ वैसा पुरुषार्थ करना वांछनीय होता है। वर्धमानता की दिशा भी निर्धारित होनी चाहिए। ज्ञान में वर्धमान होना एक बात है। ज्ञान अपने आपमें क्षयोपशम भाव से संदर्भित है। ज्ञान में और विवेचन किया जाए कि मैं किस प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने का विशेष प्रयास करूँ। साधु-साध्वियाँ, समणियाँ विविध विषय अध्ययीत हो सकते हैं। साधु का मुख्य विषय है-धार्मिक अध्ययन करना। आगमिक व प्रवचनोपयोगी सामग्री जहाँ से मिले उसका अध्ययन करना।
वर्धमानता के लिए दर्शन भी पुष्ट रहे। दर्शन शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ है दर्शन का देखना। दूसरा अर्थ है-दिखाना। तीसरा अर्थ है-नेत्र जिसके द्वारा देखा जाए। चैथा अर्थ है सिद्धांत, फिलाॅसोफी, दर्शन का अध्ययन करना। पाँचवाँ अर्थ है-सामान्य अवबोध, छठा अर्थ है-आकर्षण, रुचि, श्रद्धा। ज्ञान और चरित्र के बीच में दर्शन, श्रद्धा निष्ठा रहती है तो ज्ञान आचार में चारित्र में परिणित हो जाए। हमारे जीवन में श्रद्धा और निष्ठा का बड़ा महत्त्व है। हम सम्यग् दर्शन को वर्धमान रखें, आगे बढ़ाएँ। सम्यक्त्व को क्षायिक सम्यक्त्व की स्थिति में ले जाया जा सके, तो दर्शन का पूर्ण विकास हो जाता है। हम भावना करें कि मेरा क्षायोपशमिक सम्यक्त्व शीघ्र क्षायिक तक पहुँच जाए।
सम्यक्त्व को पुष्ट बनाना है, तो कषायमंदता रहे। यह आस्था रहे कि वही सत्य है जो जिनेश्वरों ने प्रवेदित किया है। वीतराग भगवान कभी गलत-झूठ नहीं बोलते। जो सत्य है, उसको मेरा समर्थन है, मैं उसके प्रति प्रणत रहूँ। कोई भी ग्रंथ, पंथ या संत हो, मेरा मतलब सच्चाई से है। मैं सच्चाई-अच्छाई का सम्मान करूँ।
सम्यक् दर्शन को पुष्ट करने के लिए तीसरी बात है-तत्त्व बोध का प्रयास हो। तत्त्वज्ञान हो जाए। अध्ययन में अनाग्रह का भाव हो। यथार्थ को समझने का प्रयास करें। देव, गुरु, धर्म के प्रति श्रद्धा-निष्ठा का भाव रहे। चारित्र में भी वर्धमानता रहे। चारित्र को निर्मल बनाने के लिए प्रतिक्रमण अच्छा करें और फिर प्रायश्चित ग्रहण अच्छा हो। जो बोल रहे हैं, उसका अर्थ हमारे समझ में आ जाएँ। उच्चारण अच्छा हो। दत्त चित्तता रहे। आलोयणा भी अच्छी हो जाए। जीवन के अंत में पहले आलोयणा अच्छी रहे। दिल्ली में साध्वी कनकप्रभाजी को भी साधुपणे की आलोयणा विस्तार से कराई थी। हमारी शुद्धि हो जाए। स्वयं ध्यान रखें; कई कारण से दोष लग सकते हैं, पर प्रायः सभी आलोयणा लेते रहते हैं। प्रायश्चित लेने के बाद भी भूल न हो जाए। मन में प्रायश्चित की भावना होना अच्छी बात है।
ईर्या समिति में हमारी जागरूकता रहे। साधन का काम कम पड़े, साधना अच्छी चले। ईर्या समिति भी एक साधना है। हमारी समितियों, गुप्तियों में हमारी जागरूकता रहे तो चारित्र की विशुद्धि रहती है। इन सबके प्रति जागरूकता रखना अभिवांछित है। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि मुमुक्षुओं की संख्या के साथ क्वालिटी भी अच्छी रहे। विद्या, विनय और विवेक-ये तीन गुण प्रत्येक व्यक्ति में रहें। जो व्यक्ति समुद्र की तरह गंभीर होता है, वह विद्या ग्रहण कर सकता है। ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर बढ़ें। विद्या भी आत्म-कल्याण करने वाली हो। जिसमें भक्ति-निष्ठा है, वह जीवन के किसी भी पड़ाव में विद्या ग्रहण कर सकता है। ज्ञान व धर्म का मूल विनय है। विवेक ही धर्म है। हम विद्या, विनय और विवेक से वर्धमान बन सकते हैं।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि वीर पुरुष महान पथ के पथिक होते हैं। आचार्य भिक्षु महान पथ के पथिक थे। तेरापंथ प्रभु महावीर का पंथ है। सैकड़ों-हजारों लोग उनके अनुगामी बन गए। शताब्दियों बाद भी संघ गतिशील है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने बताया था कि तेरापंथ में वर्धमानता के चार कारण हैं-आज्ञा-धारणा, विनय, सेवा और गहरी साधना। यहाँ एक के लिए सब है और सबके लिए एक है। आचार्यश्री की अनुज्ञा से बहिर्विहार से गुरुकुल में पहुँची साध्वियों व समणियों ने साधुओं को सविधि वंदन कर खमतखामणा की। संतों की ओर से मुनि धर्मरुचिजी ने उनके प्रति मंगलकामना की। साध्वीवृंद ने वर्धमान महोत्सव के संदर्भ में गीत का संगान किया। मुमुक्षु राजुल खटेड़ ने अपने समस्त परिजनों के साथ स्वागत गीत का संगान किया। कमिश्नर अशोक कोठारी ने संकल्प से संबंधित बात आचार्यश्री के समक्ष बात रखी तो आचार्यश्री ने इच्छुक लोगों को धारणा अनुसार संकल्प कराया। तेयुप और तेरापंथ किशोर मंडल के सदस्यों ने गीत का संगान किया। वर्धमान स्कूल व स्थानकवासी संघ की ओर से ओम बांठिया, स्थानीय अणुव्रत समिति के अध्यक्ष जवेरी सालेचा व टीपीएफ की ओर से पवन बांठिया ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मंडल की कन्याओं ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के उपरांत आचार्यश्री वर्धमान आदर्श विद्या मंदिर के दूसरी ओर उपस्थित विद्यार्थियों के मध्य पधारे और विद्यार्थियों को भी पावन प्रेरणा प्रदान की।