अध्यात्म की साधना में आत्मा पर ध्यान देना अपेक्षित: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म की साधना में आत्मा पर ध्यान देना अपेक्षित: आचार्यश्री महाश्रमण

पचपदरा सिटी, 12 जनवरी, 2023
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी बालोतरा में वर्धमान महोत्सव का आयोजन संपन्न कर पचपदरा सिटी पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि अध्यात्म के क्षेत्र में आत्मा का बहुत महत्त्व है। आत्मवाद एक ऐसा सिद्धांत है, जिस पर जैन शास्त्रों में भी सामग्री मिलती है। एक बड़ा विषय है-आत्मवाद। जैन दर्शन में ये कई विषय महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद, पुनर्जन्मवाद, क्रियावाद आदि। आत्मा अपने आपमें अमूर्त है। चैतन्यमय है। अध्यात्म शब्द में भी आत्मा आ गया। आत्मा और शरीर ये दो अलग-अलग तत्त्व हैं। नास्तिक विचारधारा में जीव और शरीर एक ही हैं।
भेद विज्ञान की धारा में जीव अन्य और शरीर अन्य है। ये अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण आधार है। आत्मा-शरीर अलग-अलग है, तो पुनर्जन्म की बात हो सकती है। जन्म-मरण की मुक्ति भी संभव है, उसका उपाय है-धर्म साधना। आत्मा स्थायी है तो शरीर अस्थायी, आत्मा अमूर्त है, तो शरीर मूर्त। आत्मा चैतन्य है, तो शरीर अचेतन। दोनों में बड़ी भिन्नता है। अध्यात्म में आत्मा पर ध्यान करना अपेक्षित होता है। शरीर तो नश्वर है। स्थूल शरीर हमेशा छूटने वाला है। लोभ से घनीभूत व्यक्ति के पास कितना ही धन आ जाए संतोष नहीं होता। इस वैभव को छोड़ करके आत्मा एक दिन आगे चली जाती है। फिर इतने धन के लिए पाप क्यों करूँ। यह चिंतन आत्मा को अध्यात्म की ओर मोड़ने वाला हो सकता है।
धन साथ में नहीं जाता, धर्म साथ में जाने वाला है। कर्म के साथ धर्म जुड़ जाए। मैं अकेला हूँ। मैं अनेक हूँ; सापेक्ष बात हो सकती है पर निश्चय नय से आत्मा अकेली है। कोई साथ नहीं है। मैं ही कर्मों का कर्ता और भोक्ता हूँ। अंतिम सीमा में कोई मेरा नहीं। एक आत्मा की ओर मुँह रहे। जीयो बाहर, रहो भीतर। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान भीतर में रहने का अभ्यास कराते हैं। एकात्म की ओर मुख हो जाता है, तो आत्मा परम की ओर आगे बढ़ सकती है। आज पचपदरा आना हुआ है। पचपदरा से हमारे धर्मसंघ में सीर है। यहाँ पर सभी में धर्म की भावना पुष्ट रहे। विद्यार्थियों को तीन संकल्प स्वीकार करवाए।
पूज्यप्रवर के स्वागत में मुनि ध्रुवकुमार जी, पचपदरा की साध्वियाँ-समणियाँ ने समूह गीत का संगान किया। समणी नियोजिका अमलप्रज्ञा जी, साध्वी जगतयशा जी, साध्वी प्रमोदश्री जी, कन्या मंडल संयोजिका रूपेन्दू ढेलड़िया, तेममं अध्यक्षा विजया देवी, महेंद्र कुमार चोपड़ा, तेरापंथी सभा से इंद्रमल चोपड़ा, सभा, समणी सुमनप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला एवं तेयुप ने समूह गीत की प्रस्तुति दी।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हर व्यक्ति अमृत का पान कर अमर बनना चाहता है। साधु-गुरु के दर्शन अमृत होते हैं। गुरुदेव अमृत का ही वितरण कर रहे हैं। जिस व्यक्ति को अमृत की उपलब्धि हो जाती है, वो आनंद में सराबोर हो सकता है। अमृत वही वितरण कर सकता है, जो लोक-कल्याण का कार्य करता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि धर्म की दृष्टि से विकास विशेष होना चाहिए।