ज्ञाान के क्षेत्र में विकास के लिए बुद्धि और सम्यक् परिश्रम आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण
हेमजी का तला, 23 जनवरी, 2023
जन-जन को समता का संदेश देने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर हेमजी का तला के राजकीय विद्यालय में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए जगतारक ने फरमाया कि आदमी सुखी रहना चाहता है। सामान्यतया कोई भी प्राणी दुखी रहना नहीं चाहता। पर रास्ता कौन सा लेते हैं? शास्त्र में कहा गया है कि संसार में सुखी बनने के लिए अपने आपको तपाओ। सुकुमारता को छोड़ो। परिश्रमी और कठोर जीवन जीने का आदमी को अभ्यास होता है, तो सुखी होने का यह एक उपाय है। आलस्य मनुष्यों का महाशत्रु है और वह शरीर में रहता है।
परिश्रम के समान कोई भाई नहीं है, जिसको प्राप्त कर आदमी अवसाद को प्राप्त नहीं होता। उद्यम करने से कार्य सिद्धि प्राप्त हो सकती है। हम सम्यक् परिश्रम करें। यह एक प्रसंग से समझाया कि विद्यार्थी में बुद्धि हो और परिश्रम हो तो वह ज्ञान के क्षेत्र में विकास कर सकता है। लक्ष्य केवल अंक पाने का न हो, ज्ञान भी अच्छा हो। ज्ञान का दिया जले, परिश्रमशीलता खास बात है।परिश्रम भी निरवद्य और आध्यात्मिक हो। गलत काम करने की अपेक्षा नींद लेना अच्छा है। करें तो बढ़िया परिश्रम करें। कामनाओं को छोड़ें। अवांछनीय कामनाएँ न हों। विद्यार्थी के पाँच लक्षण बताए गए हैं-कौवे की तरह चेष्टा, बगुले जैसी एकाग्रता, कुत्ते की सी नींद, समय पर काम और कामनाएँ कम हों। घृणा-ईष्र्या न करें।
दूसरे को सुखी देखकर दुखी न बनें। दूसरे को दुखी देखकर सुखी न हो। सद्विचार और आचार बढ़िया हो। ईमानदारी हो। गुस्सा-घमंड व नशा नहीं करना चाहिए। जीवन में संयम होता है तो जीवन सुखी बन सकता है। आदमी सुखी होने का रास्ता लेकर उस रास्ते पर अच्छी तरह चले। रास्ता दुःख का ले लिया तो प्राणी दुखी बन सकता है। दुखी-सुखी बनना हमारे हाथ में है। विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार हों तो जीवन अच्छा बन सकता है। पूज्यप्रवर ने नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति को समझाकर उनके संकल्प स्थानीय लोगों एवं विद्यार्थियों को स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच भंवरलाल गोदारा, पारसमल लीडर (प्रिंसिपल) ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुनि रजनीश कुमार जी ने बायतू की ओर से पूज्यप्रवर का स्वागत अभिनंदन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।