मोक्ष प्राप्ति में सहायिका का कार्य करती है समता की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण
ढाणी, बाड़मेर, 20 जनवरी, 2023
दिव्य शक्ति के भंडार आचार्यश्री महाश्रमण जी बायतू की ओर अग्रसर हैं। प्रातः लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर दिव्य पुरुष ढाणी के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे। पूज्यप्रवर ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि समता की साधना सुख की एक जननी है। समता धर्म है। अनुकूलता-प्रतिकूलता की स्थितियाँ जीवन में आ सकती हैं। समता सेवी, समता साधक पुरुष द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में सुख-शांति में रह सकता है। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान-इन सबमें समता रखनी चाहिए। साधु तो समताधर्मी, समता साधक, समता-सेवी होना चाहिए। साधु को समतारूपी अमृत पीने का प्रयास करना चाहिए। साधु महान पुरुष होता है। वीर-पुरुष महान पथ पर प्रणत होते हैं। राग-द्वेष से मुक्त रहते हैं।
आत्मस्थ रहने के लिए समता की साधना और अपनी चेतना में रहना निर्विचारता की स्थिति रहे। आत्मस्थ रहने के लिए हमें मध्यस्थ रहना होगा। जो समता में रहता है, वो मध्यस्थ है। समता परम की ओर ले जाने वाली, मोक्ष को प्राप्त कराने में सहायिका बन सकती है। साधु क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति और अहिंसा मूर्ति हो। त्याग के महत्त्व को एक प्रसंग से समझाया कि दान के साथ अहंकार नहीं करना चाहिए। आदमी काम करे पर नाम की लालसा न करे। हम समता में आगे बढ़ें। आज माघ कृष्णा त्रयोदशी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का चयन दिवस रहा है। गुरुदेव तुलसी ने 51 वर्ष पूर्व गंगाशहर में मनोनीत किया था। 50 वर्ष चयन के पूर्ण होने पर लाडनूं में उनका अमृत महोत्सव मनाया गया। उन्होंने तीन आचार्यों के शासनकाल में कार्य किया। उनमें साहित्यिक विशेषता थी और साथ ही कविता भी लिखती थी। उन्हें संस्कृत का भी विशेष ज्ञान था। लंबे समय तक साध्वी समाज का चित्त-समाधि पहुँचाने का कार्य किया।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित व शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी द्वारा संपादित ‘शासन माता ग्रंथ’ पूज्यप्रवर के करकमलों में अर्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने भी शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी के बारे में अपने उद्गार-श्रद्धांजलि अर्पित की। पूज्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी के बारे में फरमाया कि तेरापंथ द्विशताब्दी महोत्सव के अवसर पर गुरुदेव तुलसी ने उनको दीक्षित किया था। दीक्षा के 11 वर्ष बाद ही उन्हें साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित किया गया। बाद में महाश्रमणी व संघ-महानिर्देशिका पद पर भी गुरुदेव ने प्रतिष्ठित किया था। साध्वी कल्पलता जी उनके ज्यादा निकट रही थी। उन्होंने भी अच्छा कार्य किया है। साधना के लिए जैविभा बढ़िया स्थान है। शिक्षा, अध्ययन व शोध एवं स्वास्थ्य के लिए भी बढ़िया स्थान है। साध्वी कल्पलता जी को भी साधुवाद दिया जा रहा है।
आज चतुर्दशी भी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन करते हुए प्रेरणाएँ प्रदान कीं। लेखपत्र का वाचन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि मोक्ष मार्ग के दो रास्ते हैं-संयम और तप।