निमित्त के योगदान से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखर सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

निमित्त के योगदान से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखर सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

फलसूंड, 18 जनवरी, 2023
फलसूंड प्रवास के द्वितीय दिवस प्रातः मुख्यमुनि की संसारपक्षीय जन्मस्थली सवाईचंद कोचर के निवास से आचार्यश्री प्रस्थित हुए मुख्य चैक से प्रारंभ हुए जुलूस के साथ आचार्यश्री का नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पदार्पण हुआ। चारों ओर गुंजायमान होते जयघोषों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि छत्तीस ही कौम आज शांतिदूत के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत कर रहे थे। इस अवसर पर आचार्यश्री के सान्निध्य में नवनिर्मित आचार्य महाप्रज्ञ मार्ग एवं अहिंसा सर्किल का उद्घाटन किया गया। महासभा द्वारा भवन परियोजना के तहत यह प्रथम तेरापंथ भवन फलसूंड में निर्मित हुआ है। आचार्यप्रवर के मंगलपाठ से भवन का उद्घाटन हुआ।
मध्यान में 6 किलोमीटर विहार कर वर्तमान के महावीर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मुख्य प्रवचन में अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि श्रमण-धर्म बहुत बड़ी संपत्ति होती है। सम्यक्त्व और फिर श्रमण धर्म। दुनिया में अनेक संपदाएँ हो सकती हैं। भौतिक संपदा विभन्न रूपों में हो सकती है। पर श्रमण संपदा के सामने ये संपदाएँ तुच्छ लगती हैं। श्रमण संपदा से इहलोक और परलोक दोनों अच्छे होते हैं, सुगति की प्राप्ति होती है। श्रमण अवस्था में आयुष्य का बंध हो तो स्वर्ग या मोक्ष का बंध होता है। श्रमण संपदा को प्राप्त करने के लिए बहुश्रुत की पर्युपासना करें। बहुश्रुत साधु से ज्ञान प्राप्त हो सकता है। हमारी दुनिया में उपादान तो महत्त्वपूर्ण है ही पर कहीं-कहीं निमित्त भी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
हमारे धर्मसंघ में अनेक साधु-साध्वियाँ हुए हैं। कितनों को निमित्त मिला है। निमित्त मिलने से भीतर संवेग की जागृति हो सकती है। आचार्य भिक्षु को भी निमित्त मिला था। कार्य के साथ कारण भी होता है। निमित्त का भी भाग्य होता है तेज को प्रस्फुटित होने में। आज हम तेरापंथ भवन फलसूंड में प्रविष्ट हुए। तेरापंथ भवन में धार्मिक आध्यात्मिक गतिविधियाँ चलें। गुरुदेव तुलसी को पूज्य कालूगणी का आशीर्वाद मिला और वे कहाँ से कहाँ पहुँच गए। आचार्य महाप्रज्ञ जी भी छोटी उम्र में मुनि बन गए और विद्वान मुनि के रूप में सामने आए। निमित्त के योगदान से एक व्यक्तित्व को सामने आने का मौका मिल सकता है। पर साथ में उपादान भी चाहिए। उपादान मूल बीज है। उपयुक्त निमित्त से वह वृक्ष बन सकता है।
चाह को राह दिखाने वाला मिल सकता है। भीतर में उपादान है तो निमित्त मिलने से वह व्यक्तित्व निखर सकता है। साथ में पुण्य का भी योग होना चाहिए। फलसूंड से हमारे धर्मसंघ को मुख्य मुनि भी मिले हैं। वे बाल मुनि के रूप में आए थे। उनके परिवार व गाँव का योगदान रहा है। मुख्य मुनि के कारण फलसूंड का भी नाम हो गया है। मुख्य मुनि भी सेवा दे रहे हैं। काम भी करते हैं। मेरे सिवाय तीनों विशिष्ट पद मारवाड़ से ही हैं। इनके घर में जहाँ इनका जन्म हुआ था, वहाँ भी गए। बहुश्रुत का निमित्त मिलता है, तो भीतर की तेजस्विता-आध्यात्मिकता के बीज को पल्लवित-पुष्पवित-फलित होने का फिर मौका मिल जाता है। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी हमारे संघ में खूब विकास करते रहें। ये डाॅक्टर भी बन गए हैं। मेरे पास तो कोई डिग्री नहीं है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी के पास तो स्नातकोत्तर डिग्री है। बिना डिग्री भी अनेक व्यक्ति ज्ञान-संपन्न बन सकते हैं। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी का अध्ययन भी है और भी आगे बढ़ते रहें।
ज्ञान ताजा रहने से भाषण में भी ताजगी आ सकती है। ज्ञान भी दो प्रकार का होता है। एक तो भीतर प्रस्फुटित होता है। एक बाहरी ज्ञान है। एक कुएँ का पानी है, तो एक कुंड का पानी है। भीतर का स्रोत और खुले। कुछ नया मिलता रहे। मुख्य मुनि-साध्वीवर्या स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। अवस्था का सेवा-साधना में उपयोग होता रहे। प्राणायाम आदि होता रहे। शरीर अनुकूल रहे। स्वयं की साधना के लिए प्रयास होता रहे। भीतर में साधना का विकास होता रहे। व्यवस्था-कार्य में कुशलता का विकास होता रहे। कार्य करने का अनुभव बढ़े। ज्ञान, स्वाध्याय, साधना और व्यवस्था अनुशासन में कार्य कौशल का विकास होता रहे। अवसर का उचित लाभ उठाते रहें। चित्त में समाधि-शांति रहे। दोनों उभरते हुए हैं। परिश्रम करते रहें तो उसका कुछ फल मिलता है। श्रम करो, सफल बनो। कोचर परिवार भी बड़ा है। सवाईचंदजी की पोती, दोहित्री भी मुमुक्षु है। सुरेंद्र कोचर को भी मुमुक्षु रूप में साधना करने का आदेश फरमाया। रुचिका कोचर को भी मुमुक्षु साधना करने की स्वीकृति प्रदान करवाई।
साध्वीप्रमुखाश्री ने कहा कि आचार्यप्रवर परिव्रजन करते हुए नगरों, शहरों, गाँवों में विहरण कर रहे हैं। गाँवों में यथार्थता का हम दर्शन करते हैं। गाँवों से हमें बहुत कुछ उपलब्ध हो सकता है। एक छोटा सा बच्चा अपने गाँव को छोड़कर त्याग के मार्ग पर चल पड़ा। पूज्यप्रवर ने इनको प्रतिष्ठित कर दिया है। जिस पर गुरु की दृष्टि पड़ जाती है, वह कुछ-न-कुछ हो जाता है। मुख्य मुनिश्री ने कहा कि पूज्यप्रवर ने लंबी-लंबी यात्राएँ की हैं। आज आपश्री का फलसूंड पधारना हुआ है। आप कठोर श्रमी महापुरुष हैं। जहाँ-जहाँ जाते हैं-छत्तीस कौम प्रवचन का लाभ लेती हैं। फलसूंड के लोगों में भक्ति है, यहाँ के लोग सरल हैं। गुरुदेव का धोरों की धरती पर पधारना समंदर की तरह है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि फलसूंड की धरती धन्यता का अनुभव कर रही है कि आज पूज्यप्रवर मुख्य मुनि को लेकर पधारे हैं। ये धरती महिमा मंडित हो गई है। पूज्यप्रवर की दृष्टि पड़ी और एक छोटा-सा गाँव गौरवान्वित हो गया। गुरु का अपार स्नेह जिस पर पड़ जाता है, वो संघ की महान विभूति बन जाता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में तारातर मठ के महंत स्वामीजी, सभा-तेयुप संयुक्त, ज्ञानशाला, महिला मंडल, कन्या मंडल द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। मुमुक्षु प्रेक्षा कोचर ने गीत प्रस्तुत किया। संतोष तातेड़ एवं हीरालाल मालू ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम में आचार्यश्री ने महती कृपा कर फलसूंड के सुरेंद्र कोचर एवं रुचिका कोचर को मुमुक्षु साधना करने की स्वीकृति प्रदान की। ज्ञातव्य है कि दोनों ही मुख्यमुनि महावीर कुमार जी के संसारपक्षीय परिवार से संबद्ध हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।