जीवन का अंग बने शिष्टाचार

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जीवन का अंग बने शिष्टाचार

चंडीगढ़।
शिष्टाचार हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है। विनम्रता, सहजता से वार्तालाप, मुस्कराकर जवाब देने की कला प्रत्येक व्यक्ति को मोहित कर लेती है। जो व्यक्ति शिष्टाचार से पेश आते हैं वे बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ न होने पर भी अपने-अपने क्षेत्र में पहचान बना लेते हैं। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे शख्स से शिष्टाचार और विनम्रता की आकांक्षा करता है। शिष्टाचार का पालन करने वाला व्यक्ति स्वच्छ, निर्मल और दुर्गुणों से परे होता है। यह विचार मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत भवन में सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहा कि यदि व्यक्ति किसी समस्या या तनाव से ग्रस्त है, लेकिन ऐसे में भी वह शिष्टाचार के साथ पेश आता है तो अनेक लोग उसकी समस्या का हल सुलझाने के लिए उसके साथ खड़े हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं ही समस्या के समाधान तक पहुँच जाता है। शिष्टाचार को अपने जीवन का एक अंग मानने वाला व्यक्ति अक्सर अहंकार, ईष्र्या, क्रोध आदि से मुक्त होता है। ऐसा व्यक्ति हर जगह अपनी छाप छोड़ता है।