आज्ञा और मर्यादा है तेरापंथ धर्मसंघ की एकता का आधार: आचार्यश्री महाश्रमण
बायतू, 27 जनवरी, 2023
आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा मंगल स्मरण से मर्यादा महोत्सव के द्वितीय दिवस का शुभारंभ हुआ। महामनीषी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ का मर्यादा महोत्सव समारोह का आज मध्यवर्ती दूसरा दिवस है। हमारे धर्मसंघ में अनेक कार्यक्रम आयोजित होते हैं परंतु मर्यादा महोत्सव की अपनी महिमा है। हमारे धर्मसंघ का वार्षिक महोत्सव जैसा समारोह होता है। इस कार्यक्रम में दूर-दूर के क्षेत्रों में चातुर्मास करके साधु-साध्वियाँ सहभागी बन जाते हैं।
हमारे धर्मसंघ का इतिहास लगभग 262 वर्षों का है। महामना आचार्य भिक्षु के द्वारा यह स्थापित है। उस समय उनको लगा कि क्रांति की अपेक्षा है। शांति में रहने के लिए क्रांति को छोड़ दें, ये भी एक चिंतनीय बात हो सकती है। जरूरत हों तो शांति में क्रांति भी करनी चाहिए। क्रांति में भी शांति रहे। व्यावहारिक जगत में निमित्तों का भी अपना प्रभाव होता है। पर मेरे विचार में निमित्तों का मूल्य कम है, उपादानों का मूल्य ज्यादा है। अनेक प्रसंगों में उपादान महत्त्वपूर्ण है। चित्त-समाधि में उपादान महत्त्वपूर्ण है। उपादान मजबूत है, तो निमित्त का वहाँ वश नहीं चलता। समतारूपी उपादान नहीं है, तो मन में अशांति हो सकती है। हमारी चित्त समाधि हमारे हाथ में रहनी चाहिए। परावलंबिता न नहीं रखनी चाहिए।
हमारा संघ के प्रति समर्पण का भाव हो। हम दूसरों को साता पहुँचाएँगे तो हमें साता अवश्य मिलेगी। हमारा दृष्टिकोण उदार हो। सम्यक् दृष्टिकोण के बिना सम्यक् चारित्र हो ही नहीं सकता। हम सब एक धर्मसंघ के सदस्य हैं। अच्छा प्राप्त होने की संभावना है तो उसके लिए कुछ कठिनाइयों को भी झेलने का सामथ्र्य रखें। यदि आचार्य भिक्षु घबरा जाते तो ये मर्यादा महोत्सव कहाँ होता? धर्मसंघ कहाँ होता? हमारे धर्मसंघ में आज्ञा का बड़ा महत्त्व है। आगम का स्वाध्याय हमारी खुराक है। आगम-स्वाध्याय समयानुसार चलता रहे। प्रातःकालीन समय स्वाध्याय में लगे तो अच्छा उपयोग हो सकता है। मुनि मोहनलाल जी ‘आमेट’ बायतू से जुड़े थे, वे अच्छा गीत गाते थे। हमारा समय प्रबंधन अच्छा रहे।
आगम संपादन के राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री आचार्य तुलसी थे। सहयोगी आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी थे। आगम पढ़ने से जानकारियाँ मिल सकती हैं। आगम पाठ से ज्ञान की वृद्धि और वैराग्य की समृद्धि मिल सकती है। हम आज्ञा के प्रति जागरूक रहें। आगम में आचार-गोचरी संबंधित कितनी बातें मिल सकती हैं। उपासक श्रेणी व श्रावक आगम के अनुवाद को भी पढ़ सकते हैं। हमारी संघीय मर्यादाएँ हैं। कुछ मर्यादाएँ तो स्तंभ हैं। सर्व साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें यह तो हमारा महास्तंभ है। मर्यादाएँ हमारी एकता का आधार हैं। मर्यादाओं के प्रति जागरूकता रहे। मर्यादाएँ सुरक्षा कवच एवं त्राण हैं।
श्रावक-श्राविकाओं की भी अपनी मर्यादाएँ हैं। श्रावक संदेशिका पढ़ने से जानकारियाँ एवं पथदर्शन मिल सकता है। आचार्य को हमारे धर्मसंघ में उच्च स्थान दिया गया है। आचार्य के निर्देश, आज्ञा, इंगित की आराधना और उनकी सेवा-सुश्रुषा होती रहे। आचार्य को हमारे धर्मसंघ में जितना अधिकार दिया गया है, उतना ही भार भी दिया गया है। आचार्य भी अपने कार्य में जागरूकता रखें। आचार्य को भी समर्पित धर्मसंघ मिले तो वह अपना कार्य कर सकता है। व्यवस्था अच्छी रह सकती है। आचार्य अपने दायित्व के भार को भी अनुभव करता रहे।
संघ हमारा आश्रय है। एक व्यवस्थित धर्मसंघ हमें प्राप्त है; यह नंदनवन है। संघ का विकास-हित हो, व्यक्तिगत हित गौण है। संघ भी धर्म के लिए है। धर्म को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। शरीर तो एक दिन छूटने वाला है, पर संघ हमारा न छूटे। आत्मा, संघ और शरीर तीन बातें हैं। तीनों का हित हो। संवर निर्जरा की साधना चलती रहे। संघ की सेवा करते रहें। सेवा शरीर से हो सकती है और दिमाग से भी प्रशासन-प्रबंधन से सेवा दे सकते हैं। ज्ञान देना भी सेवा है। अनेक रूपों से संघ-सेवा हो सकती है। न्यारा में तो सेवा का और अधिक दायित्व होता है। हम औचित्य के अनुसार संघ-सेवा का प्रयास करते रहें। उपासक श्रेणी के पास भी सेवा का काम है। संघ हमारा एक है। सेवाएँ अनेक हैं।
आज ही के दिन आचार्यश्री तुलसी ने आचार्य महाप्रज्ञ जी को आचार्य पद पर स्थापित किया था, वह एक अद्भुत प्रसंग था कि अपने गुरु के द्वारा उनका पदाभिषेक हुआ था। मैं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को वंदन करता हूँ। मुझे भी लगभग 13 वर्ष तक युवाचार्य के रूप में उनके चरणों में रहने का अवसर मिला था। आचार्य महाप्रज्ञ जी का व्यक्तित्व महान था। उनमें महत्ता थी। मुझे भी उन्होंने खुला रहकर कार्य करने का अवसर प्रदान कराया था। उनका ज्ञान विलक्षण था। यात्राएँ भी कीं। हमें अच्छी प्रेरणाएँ मिलें, यह काम्य है।
आचार्य भिक्षु द्वारा प्रदत्त मर्यादाएँ हैं अनमोल धरोहर - मुख्य मुनि डाॅ0 महावीर कुमार
मुख्य मुनि डाॅ0 महावीर कुमार जी ने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि हमें इतने विधिवेत्ता, निपुण आचार्य भिक्षु जैसे आद्यप्रवर्तक मिले। सत्य के दरवाजे खोलने वाला तेरापंथ धर्मसंघ मिला। आचार्य भिक्षु मर्यादा पुरुषोत्तम आचार्य थे। आचार्य भिक्षु की मर्यादाएँ हमें अनमोल धरोहर के रूप में प्राप्त हैं। उन्होंने जो शुद्ध आचार-विचार की प्ररूपणा की थी वो आज भी हमारे धर्मसंघ में प्रवद्र्यमान है। आचार्य भिक्षु द्वारा प्रदत्त धारा को हमारे पूर्वाचार्यों ने सहòगुणित करने का प्रयास किया। वर्तमान में भी वह शत्-सहòगुणित हो प्रवाहित हो रही है।
पूज्य जयाचार्य ने उनकी मर्यादाओं को एक महोत्सव के रूप में मनाने का प्रयास किया जो वरदान बन गया है। मर्यादा महोत्सव के अवसर पर हमें परमपूज्य द्वारा ऐसी प्रेरणा मिलती है कि वह जोश हमें मर्यादाओं में और जागरूक रहने की शक्ति प्राप्त होती है। मर्यादा महोत्सव महा हाजरी का-सा अवसर बन जाता है। ‘भिक्षु गण में एक गुरु’ गीत का सुमधुर संगान करवाया।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष गौतम छाजेड़, पद्मचंद पटावरी, मुमुक्षु बहनों ने गीत की प्रस्तुति दी। बायतू तेरापंथ समाज ने मर्यादा महोत्सव गीत प्रस्तुत किया। शांतिलाल सांड, तेरापंथ महिला मंडल मंत्री अनीता बाघमार, निधि सालेचा, सोहनलाल बालड़, मदन-राधा बालड़ ने गीत द्वारा अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी द्वारा किया गया।