धर्म के समाचरण से करें जीवनरूपी भवसागर को पार: आचार्यश्री महाश्रमण
जीवाणा, 4 फरवरी, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि अध्यात्म के महासुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 7ः3 किमी का विहार कर जीवाणा गाँव में पधारे। विश्वगुरु ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि नौका एक उपयोगी साधन है। हमारे जैन शास्त्र में भी कहा गया है कि साधु भी किसी स्थिति में नौका विहार कर सकता है। हमारे जैन शासन के चारित्रात्माओं ने नौका विहार किया भी है। नौका पार लगाने वाली होती है। पर हर नौका पार लगा दे यह जरूरी नहीं है। योग्य नौका पार लगा सकती है। शास्त्र में एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात बताई कि यह शरीर नौका है। लकड़ी की नौका तो पानी से पार लगाने वाली है। शरीर रूपी नौका भवसागर से पार लगाने वाली हो सकती है। जीव नाविक है और यह संसार अरणव समुद्र है, भव सागर है। इससे महर्षि लोग तर जाते हैं।
शरीर एक ऐसा साधन है, जो धर्म का साधन बन सकता है, तो पाप का साधन भी बन सकता है। यह शरीर रूपी नौका पार लगाने वाली बन सकती है, तो डुबोने वाली भी बन सकती है। सछिद्र नौका डुबोने वाली एवं निसछिद्र नौका पार लगाने वाली होती है। आश्रव रूपी छिद्र जीवन में है तो इस नौका में कर्म रूपी पानी आ जाता है और वो डुबोने वाली नौका बन जाती है। हमें तो पार लगाने वाली नौका चाहिए। आश्रवों रूपी छिद्रों को बंद कर दें, संयम करें तो इस नौका के द्वारा पार पहुँचा जा सकेगा। तपस्या के द्वारा नौका आगे बढ़ेगी तो मोक्ष प्राप्त हो सकेगा। यह मानव औदारिक शरीर है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। चारित्रात्माएँ व गृहस्थ ध्यान दें कि यह नौका सक्षम कैसे रहे?
शास्त्र में कहा गया है कि जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, शरीर सक्षम रहे, परवशता न रहे, जब तक शरीर में व्याधि-बीमारी न लगे, तब तक नौका हमारी ठीक है। धर्म का समाचरण कर लो। सेवा कर लो, नौका सक्षम हो तो लंबी यात्राएँ हो सकती हैं। गुरुदेव तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तो अंतिम समय तक प्रवचन किया था। शरीर ठीक है, तो साहित्य का काम कर लो, तपस्या कर लो। हमें यह चारित्र का जीवन, अध्यात्म का जीवन प्राप्त है। हम तो धन्य हो गए, जो अध्यात्म के पथ पर आ गए। चारित्र रत्न मिलना बहुत बड़ी बात है। बहुत कीमती है, इसकी सुरक्षा करें। इसका हम धर्म में उपयोग कर संसार अरणव को पार करें। मोक्षश्री का वरण करें। पूज्यप्रवर ने स्कूल की विद्यार्थिनियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्त के संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।