शिक्षा का उद्देश्य हो जीवन का सर्वांगीण विकास

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शिक्षा का उद्देश्य हो जीवन का सर्वांगीण विकास

कुकरोड।
शिक्षा का उद्देश्य जीवन का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। एकांगी विकास घातक हो सकता है। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक-इन चारों का जब विकास होता है तब पूर्ण विकास कहलाता है। शिक्षा के इस युग में शारीरिक और बौद्धिक विकास पर बल दिया जा रहा है जबकि मानसिक और भावनात्मक विकास नहीं होने से आज के विद्यार्थी गुस्सैल, आग्रही और जिद्दी बनते जा रहे हैं। जीवन विज्ञान शिक्षा का एक ऐसा आयाम है जिसके द्वारा बच्चों को जीने की कला का बोध दिया जा रहा है।
जीवन विज्ञान के माध्यम से विद्यार्थियों को अनुशासन, विनम्रता, सहिष्णुता, सौहार्द, स्नेह सहयोग जैसे मूलभूत गुणों का रचनात्मक पाठ पढ़ाया जाता है, जिससे उनका जीवन उन्नति की ओर अग्रसर होता है। ये विचार राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कुकरोड में अपने संबोधन में व्यक्त किए। मुनि अमन कुमार जी ने आगे कहा कि आज के टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक युग में छोटे-छोटे बच्चों में मोबाइल फोन का बहुत आकर्षण है। मोबाइल फोन बुरा है, ऐसा मैं नहीं मानता किंतु इसका अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग होने से परिणाम घातक आ रहे हैं। अतः विद्यार्थी जीवन में इससे बचने का प्रयास करना चाहिए।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य हनुमानलाल वैष्णव, वरिष्ठ व्याख्याता किसना राम घोटिया, जितेंद्र कुमार जांगिड़ ने मुनि अमन कुमार जी का स्वागत व अभिनंदन करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। पृथ्वी सिंह, प्रह्लाद राम, राजेश कुमार, राजूराम केशुराम, पिंकी चावला, नंदकिशोर, घम्मी बाई मीणा सहित कई गणमान्यजन उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजन में बड्सू से धनपत जेतमाल का विशेष योगदान रहा।