वीतराग प्रभु की भक्ति से शक्ति जागृत हो सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वीतराग प्रभु की भक्ति से शक्ति जागृत हो सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण

जीरावला पार्श्वनाथ, 14 फरवरी, 2023
मर्यादा पुरुषोत्तम आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर जीरावला गाँव में जीरावला पार्श्वनाथ परिसर में पधारे। आचार्यश्री प्रबोधचंद जी महाराज से आध्यात्मिक मिलन एवं धर्मचर्चा हुई। मुख्य प्रवचन में अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि लोगस्स का पाठ एक स्तुति का पाठ भी है और कुछ माँगने का पाठ भी है।
माँगने के साथ स्तुति का भी योग होता है। लोगस्स में चौबीस तीर्थंकरों की नामों की उल्लेखपूर्वक वंदना की गई है। नाम पच्चीस हैं, तीर्थंकर चौबीस बताए गए हैं। सुविधिनाथ के दो नाम दे दिए। प्रत्येक अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल में तीर्थंकर, चौबीस तीर्थंकर ही भरत-ऐरावत क्षेत्र में होते हैं, ऐसी व्यवस्था है।
वर्तमान अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ हुए। भगवान ऋषभ की स्तुति में भक्तामर स्तोत्र है, बहुत लोग इसका पाठ करते हैं। भक्तामर की तर्ज पर दूसरा स्तोत्र हैµकल्याणमंदिर स्तोत्र, जो भगवान पार्श्व की स्तुति पर आधारित है। भगवान पार्श्व से जुड़ा हुआ स्थान जहाँ हम आज आए हैं। भगवान पार्श्व के जितने मंदिर हैं, उतने मंदिर शायद अन्य तीर्थंकरों के संभवतः नहीं मिलते। यह भगवान पार्श्व की लोकप्रियता को साक्षात करने वाला है।
भगवान पार्श्व के साथ धरणेंद्र पद्मावती का भी योग है। भगवान पार्श्व तो वीतराग प्रभु थे। उनके उपासक तो मनुष्य व देवी-देवता होते हैं। तीर्थंकर तो देवाधिदेव होते हैं। धर्म-अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता तीर्थंकर प्रभु होते हैं। भगवान पार्श्व को पुरुषादानीय विशेषण प्राप्त है। स्तुति करने वाले का कल्याण हो सकता है।
लोगस्स में तीर्थंकरों को बार-बार वंदना की गई है, स्तुति की गई है। तीर्थंकर मेरे पर प्रसन्न रहें। माँग की गई कि मुझे आरोग्य, बोधि लाभ और समाधि दो। मुझे सिद्धि प्रदान करें। माँग तो जो समर्थ है, उनसे करें। ये मंदिर धर्म-उपासना से जुड़े स्थान हैं।
चौबीसों ही तीर्थंकर समान शक्ति संपन्न हैं। नाम-स्थान अलग-अलग हो सकते हैं। जन्म, दीक्षा, कैवल्य व निर्वाण के स्थान अलग-अलग हो सकते हैं। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए हैं। हम भगवान महावीर के शासन से संबद्ध हैं। भावों को अनेक शब्दों में विभक्त किया जा सकता है। हम वीतराग प्रभु के पार्श्व में रहें। वीतराग प्रभु की भक्ति से शक्ति जागृत हो सकती है।
प्रभु पार्श्व देव चरणों में शत-शत प्रणाम हो। गीत का सुमधुर संगान पूज्यप्रवर ने किया। वीतराग की भक्ति से हमारे में भी शक्ति जागे। हम भी वीतरागता की दिशा में खूब मजबूती से कदम आगे बढ़ाएँ और कभी वीतरागता को प्राप्त हो जाएँ। राग-द्वेष मुक्त बन जाएँ। पूज्यप्रवर के स्वागत में जीरावला पार्श्वनाथ परिसर के मंत्री पोपट भाई जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।