शुभ भावों से पाप कर्म के बंध से बचा जा सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शुभ भावों से पाप कर्म के बंध से बचा जा सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

पावटी, 12 फरवरी, 2023
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 9ः5 किलोमीटर का विहार कर जालौर जिले के पावटी ग्राम स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए गुरुदेव ने फरमाया कि यह पुरुष! अनेक चित्तों वाला होता है। मनुष्य में भाव परिवर्तन भी हो जाता है।
दो प्रकार के भाव हो जाते हैंµशुद्ध भाव और अशुद्ध भाव। शुद्ध-अशुद्ध या शुभ-अशुभ भाव भी अनेक प्रकार के होते हैं। मन के अशुद्ध और अशुभ भावों से दुःख प्राप्त हो सकता है, इसलिए अशुद्ध भावों से आदमी बचे। शुभ व शुद्ध भावों से आदमी सुख को प्राप्त होता है। भीतर का भाव जगत मोहनीय कर्म से जुड़ा हुआ है। मोहनीय कर्म के प्रभाव से भाव अशुद्ध हो जाते हैं। मोहनीय कर्म के वियोग से शुभ भाव बन जाते हैं। मोहनीय कर्म एक तरह का नागराज है। भावों के प्रभाव से चिंतन बदल जाता है, यह एक प्रसंग से समझाया। बुढ़ापा आने से शरीर क्षीण हो सकता है। भावों से तो गन्ने का रस भी सूख जाता है।
जैन दर्शन में छः लेश्याएँ बताई गई हैं, इन लेश्याओं से भावों के परिणाम शुभ-अशुभ हो सकते हैं। इनमें प्रथम तीन अशुभ व शेष तीन शुभ परिणामों से संबंधित है। शुभ भावों से पाप कर्म के बंध से बचा जा सकता है। शुभ योग से पुण्य का बंध होता है और निर्जरा भी होती है। अशुभ योग से पाप बंध होता है। हम अपने योगों को शुभ रखने का प्रयास करें।
पूज्यप्रवर के स्वागत में राजसमंद से लक्ष्मणसिंह कर्णावट, विद्यालय की ओर से जीवदान चारण ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति की ओर से विद्यालय परिवार का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।