अध्यात्म जगत में ध्यान का शीर्ष स्थान: आचार्यश्री महाश्रमण
सायला, 7 फरवरी, 2023
धर्म चक्रवर्ती आचार्यश्री महाश्रमण जी लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर सायला पधारे। पूज्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म जगत में ध्यान का बहुत महत्त्व है। ध्यान की अनेक पद्धतियाँ चलती हैं। बहुत लोग ध्यान शिविरों में भाग लेते हैं। ध्यान का प्रयोग भी करते हैं। तेरापंथ धर्मसंघ में प्रेक्षाध्यान पद्धति चलती है।
जैसे शरीर में सिर का, वृक्ष में मूल का स्थान है, वही स्थान सर्वसाधु धर्म में ध्यान का होता है। एकाग्र चिंतन करना ध्यान हो जाता है। शरीर, मन और वाणी की प्रवृत्ति का निरोध करना भी ध्यान हो जाता है। जैन वाङ्मय में ध्यान के चार प्रकार बताए गए हैंµआर्त्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान। आर्त-रौद्र ध्यान असद् ध्यान है। धर्म-शुक्ल ध्यान, शुभ ध्यान है, जिस ध्यान के साथ मोह जुड़ा है, वह अशुभ ध्यान है। शरीर, मन और वाणी
की प्रवृत्ति योग है। योग भी शुभ-अशुभ होता है। योग के साथ मोह कर्म जुड़ने से वह अशुभ क्षेत्र हो जाता है। योग के साथ मोह का वियोग है, तो योग शुभ हो जाता है। हम अशुभ ध्यान से बचने का प्रयास करें। एक प्रसंग से समझाया कि मोह आने से व्यक्ति आर्त्तध्यान में जा सकता है। प्रिय के वियोग से आर्त्तध्यान आ सकता है तो अप्रिय के संयोग से भी आर्तध्यान हो सकता है। प्रेक्षाध्यान शुभ ध्यान है, उसे करने का प्रयास करें। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी बहुत प्रेक्षाध्यान करवाते थे। ध्यान हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है। कायोत्सर्ग ध्यान का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। प्रेक्षाध्यान के पाँच सूत्र हैंµभावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार और मितभाषण। पूज्यप्रवर ने प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करवाया।
आज सायला आए हैं। 10 वर्ष बाद पुनः आना हुआ है। सबमें अच्छा धर्म-ध्यान का क्रम चलता रहे। पूज्यप्रवर के स्वागत में चंद्रशेखर सालेचा, लीलाबाई सालेचा, सालेचा परिवार द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। स्थानीय सरपंच रजनी कंवर, किरण कंवर, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, स्कूल के प्रिंसिपल गहरीराम ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने ज्ञानार्थियों को गीतिका सीखने की प्रेरणा दी। व्यवस्था समिति द्वारा विद्यालय परिवार का स्मृति चिÐ से सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी द्वारा किया गया।