विशिष्ट बनने के लिए शिष्ट बनें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विशिष्ट बनने के लिए शिष्ट बनें: आचार्यश्री महाश्रमण

रेवंतड़ा, 8 फरवरी, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ विहार कर रेवंतड़ा पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि पूरी दुनिया में 84 लाख जीव योनियाँ हैं। इन 84 लाख जीवयोनियों में संसारी जीव जन्म-मरण करते रहते हैं।
जीव जो संसारी है, उनका बार-बार जन्म-मरण होता रहता है। इन 84 लाख जीव योनियों में अनंत-अनंत जीव हैं। हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है। सब जीव जीवन जीना चाहते हैं। जीने की शैली कलापूर्ण हो। जैन साहित्य में बहत्तर कलाएँ बताई गई हैं। अनंत छोटे-छोटे प्राणी संसार में हैं।
कोई आदमी बहत्तर कलाएँ सीख जाए पर यदि धर्म की कला को नहीं जानता तो वह व्यक्ति पंडित होकर भी अपंडित है। धर्मविहीन श्वास लेने वाला व्यक्ति भी धर्म की दृष्टि से जीवित नहीं है। जीवित वह होता है जिसमें धर्म होता है। विद्यालय में विद्यार्थियों को अनेक विषयों के साथ धर्म की कलाएँ समझायी जाएँ तो विद्यार्थियों में और विकास हो जाए। खुद का जीवन शिक्षा देने वाला बन सकता है। विद्यालय व माता-पिता से विद्यार्थी को अच्छे संस्कार मिलते रहें। जब संस्कार वर्षा से विद्यार्थी भीग जाते हैं और वह वर्षा का पानी भीतर तक चला जाता है तो विद्यार्थी विशिष्ट बन सकते हैं। विशिष्ट बनने के लिए शिष्ट बनना पड़ता है। अनुशासन से विकास हो सकता है।
एक प्रसंग से समझाया कि अच्छे संस्कार से व्यक्ति देश का विशिष्ट नागरिक बन सकता है। सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति के संस्कार विद्यार्थी में रहें। अच्छे-सच्चे बच्चे समाज और देश के भविष्य होते हैं। वे समाज और देश के विकास में निमित्त बन सकते हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में गौतम सेठिया, जैन समाज से देवीचंद हीराणी स्कूल के अध्यापक महेंद्रसिंह राजपुरोहित ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।