शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की पुण्यतिथि पर विशेष

शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की पुण्यतिथि पर विशेष

अर्हम

साध्वी प्रेक्षाप्रभा

आनंददायिनी थी, शिव शुभ चांदनी थी
संयम छटा, सुरभि लुआ सृजन स्वामिनी थी
भक्तों के नयनों में बसी वह दिव्य वादिनी थी।।

भैक्षव गण को महकाया, विकसाया,
निज आत्म संपदा से, कण-कण सरसाया।
आलोक दिया समता का, क्षमता का,
ममता मूरत ने, अमृत रस बरसाया।।

गुरु तुलसी की कृति पावन, मनभावन,
श्री महाप्रज्ञ शासन में रही बन सावन।
जय ज्योति चरण गुण गाया, सिर साया,
श्री, हृी, धी, धृति गुण सुमनों चमन सजाया।।

आधी दुनिया की शक्ति गुरु भक्ति,
पल्लव-पल्लव में भरती गण अनुरक्ति।
शासन माता संबोधन, खिला गुलशन,
जय-विजय भाग्यश्री लुटती चरणों हर क्षण।।

लय: क्या खूब लगती हो---