शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि पर
अर्हम्
श्रुत का निर्झर, बहता अविरल, असाधारण छाँव तले।
गुरु-दृष्टि सबल, तेरी भक्ति अमल, श्रद्धा के फूल खिले।।
वात्सल्य भरे आंचल में, नंदन-कलियाँ खिल जाती।
प्रशिक्षण की तस्वीरें, यादों में उभर कर आती।
आश्वास मिला, विश्वास जगा, विकास की डगर चले।।
हर लब पर गूँज रहा है, गण की थी एक नजीर।
मनहर सतरंगी-आभा, से सजी कितनी तकदीर।
तेरे पुण्य प्रकाम, सेवा निष्काम, हर पल नवदीप जले।।
गुरु त्रय की प्रभुता पाकर, तुम चमके बन ध्रुवतारे।
साध्वीप्रमुखा शासन के, साक्षी अम्बर के तारे।
तब चरण बढ़े, गण शिखर चढ़े, गणिवर अरमान फले।।
श्रम-संयम-साधना से, लिखी अनुपम कई कहानी।
मातृत्व भरा नेतृत्व, ज्योतिर्मय था वरदानी।
महका ये चमन, अवनि व गगन, वे शासनमाता मिले।
वार्षिक पुण्यतिथि, पावन है स्मृति, श्रद्धांजलि स्वर निकले।।
लय: आ चल के तुम्हें