अष्टम आचार्य कालूगणी के जन्मदिवस पर कार्यक्रम

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अष्टम आचार्य कालूगणी के जन्मदिवस पर कार्यक्रम

कीर्तिनगर।
अष्टमाचार्य पूज्य कालूगणी के जन्मदिवस एवं अणुव्रत के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में अपने हार्दिक उद्गार व्यक्त करते हुए उग्रबिहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने कीर्तिनगर में निर्मल सुराणा के निवास स्थान पर कहा कि पूज्य कालूगणी अपनी माँ की इकलौती संतान थी। माँ को सोलह वर्षों बाद संतान की प्राप्ति हुई। जन्म के कुछ समय बाद पिताजी का स्वर्गवास हो गया। माता ने पीहर में रहकर संतान का पालन-पोषण किया।
मात्र 10 वर्ष की अवस्था में बालक कालू ने अपनी माता छोगांजी के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के पंचम आचार्य मघवागणी से बीदासर में दीक्षा स्वीकार की, संत बनते ही आपने अपने आपको अध्ययन साधना में लगा दिया। मघवागणी, माणकगणी, डालगणी सबके दिल में आपने अपना गहरा स्थान बना लिया। डालगणी ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। आपने देश-प्रदेश की यात्राएँ कर संघ की खूब श्रीवृद्धि की। गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी आपके द्वारा दीक्षित हुए जो तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें, दशवें आचार्य रूप में हमें प्राप्त हुए आचार्य महाश्रमण जी भी आपका स्मरण जप करके दीक्षा के लिए तत्पर बनें।
आचार्यश्री तुलसी ने अपने गुरुदेव के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में एक आंदोलन का सूत्रपात किया, जिसे अणुव्रत आंदोलन से जाना जाता है। इस असांप्रदायिक आंदोलन से तेरापंथ समाज और आचार्यश्री तुलसी की गरिमा-महिमा बढ़ी है, वह अपने आपमें अनुपम है। इस अवसर पर उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक सूर्य प्रकाश शामसुखा, मांगीलाल छाजेड़ ने भी अपने विचार प्रकट किए।