पौरुष और समर्पण की नजीर

पौरुष और समर्पण की नजीर

साध्वी सुषमाकुमारी

शासनमाता असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी इस तेरापंथ धर्मसंघ की महान विभूति थी। जिन्होंने अपने जीवन काल के 50 वर्ष तक साध्वीप्रमुखा के रूप में गुरुत्रय की हार्दिक समर्पण से सेवा की। अपनी शक्तियों को जगाया। उच्चता के शिखर पर आरोहण किया। संघ में नए-नए काम किए। साध्वी समाज में ज्ञान के नए क्षितिज खोले। वाक् कौशल बढ़ाने हेतु उन्मुक्त मैदान दिया। आज किसी भी क्षेत्र में देखें तुम्हारी पावन सन्निधि में अनेक साध्वियों ने विकास के नए परचम फहराए। तुमने अपने हाथों से एक-एक साध्वियों पर वात्सल्य की धारा बहाई। जीवन को संवारा, दिया उत्तम जीवन जीने का सहारा।
महिला समाज को जिस रूप में तुमने खड़ा किया, आधी दुनिया, तुम्हारी ऋणी रहेगी। महिलाओं के विकासशील सुंदर स्वरूप में शासनमाता का पौरुष बोल रहा है। उनकी उत्तम सार-संभाल का उत्कृष्ट नमुना है विकासशील महिला समाज। अपने आराध्य देवता गुरुदेव तुलसी तुम्हारी हर साँस में बोलते थे। जिस समय लाडनूं में साध्वी जसू जी महासतियाँ जी को अनशन का प्रत्याख्यान करवाया तो ऐसा लग रहा था सचमुच ही गुरुदेव तुलसी बोल रहे हैं। गुरुदेव महाप्रज्ञ और गुरुदेव महाश्रमण जी को जिस तरह तुमने निश्चिंत बनाया। आज इतिहास की धरोहर बन गई। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के शब्दों में साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी विदुषी हैं। विनय और समर्पण में प्रथम नंबर हैं। आचार्यश्री महाश्रमण जी के शब्दों में साध्वीप्रमुखा हमको तो गढ़ी-गढ़ाई, नपी-नपाई, बणी-बणाई मिली है। असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री जी ने जीवन के अंतिम क्षणों का जो इतिहास बनाया दुनिया का दस्तावेज बन गया। समता की सरिता प्रवाहित हो गई। दुनिया में सहिष्णुता का राॅल माॅडल प्रस्तुत कर दिया।
तुमने तीनों गुरुओं को जितना समर्पण दिया उससे कई अधिक कृपा का बल पाया। गुरुदेव ने आपको निकटस्थ जितनी सेवा कराई वे क्षण अपने आपमें अमूल्य बन गए। संघ की थाती बन गए। धन्य कृत पुण्य बन गए। तुम्हारा कर्तृत्व और व्यक्तित्व अनुपम था। लेखन और वक्तृत्व अनुपम था। अनुशासन और वात्सल्य अनुपम था। शक्ति और धृति अनुपम थी तभी तुमने अनुपम व्यक्तित्व तैयार किए। संघ को अनुपम सेवाएँ दी। अपने संस्कारों की सुरभि से संघ को सुरक्षित किया। वात्सल्य का अजस्व दरिया बहाया। ऐसे अनुपम शासनमाता की पावन सन्निधि में जिन क्षणों को जिया वे क्षण सार्थक हो गए। मैं परम सौभागय मानती हूँ महाशक्ति की पावन शक्ति मुझे लगभग 50 वर्ष मिली। उस शक्ति को किन शब्दों में प्रस्तुति दूँ यह शब्दों से परे है। प्रथम वार्षिकी पुण्य तिथि पर भीगे दिल की अंतरश्रद्धा समर्पित।
संघ समंदर की ये लहरें कैसे क्या उपहार चढ़ाएँ,
अंबार लगा है उपकारों का किन शब्दों में आज बताएँ,
अध्यात्म जत की अखंड ज्योति से ज्योतिर्मय है शासनमाते,
वात्सल्य भरा अनुशासन तेरा प्रतिपल आँखों में भर आए।।