अरे धार्मिको किस
साध्वी सुनंदाश्री
‘¬ हृीं श्रीं क्लीं शासन मात्रे नमः’ मंत्र जो पाया है।
सुमिरण करते करते हमने पूरा साल बिताया है।।
बड़े जतन से साध्वी समुदय की तुमने संभाल करी।
बनी प्रेरणा स्रोत हमारी जड़ें जमाई हरी भरी।
हवा दवा जल आतप पाकर हर पादप विकसाया है।।
असाधारण साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी गौरवशाली।
शासन माता विरुद प्रदाता महाश्रमण महिमाशाली।
सर्वोत्कृष्ट कृपा उत्कृष्ट समर्पण की यह माया है।।
बरगद-सी शीतल छाया में हम सबने आराम किया।
मस्त व्यस्त दिनचर्या को क्यों तुमने पूर्ण विराम दिया।
रह रह स्मृतियाँ उभर रही नयनों ने नीर बहाया है।।
इह-पर उभर लोक में अमर बनी यह पुण्य निशानी है।
ज्योतिर्मय आभा आत्मा की क्या किससे अनजानी है।
दिव्य भव्य नव छवि दिखलाओ गीत हृदय से गाया है।।