अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्
तुम हो ऊध्र्वलोक निवासी, हम वसुधा के वासी हैं।
संस्मरणों की बांध गठरिया, मनवा फिरत उदासी है।।

क्या है रीति-रिवाज वहां के, आखिर परम्पराएं क्या।
नीति-नियम कुछ तो बतलाओ, हम ही हुए पराए क्या।
मिलना हो जाए तो करनी, बातें अच्छी-खासी है।।

नाम धाम क्या पता-ठिकाना, भावों को प्रेषित करना।
तव बिछोह की दीर्घावधि को, पलक झपकते ही भरना।
इस कारज में तुम सक्षम हो, हम तो सतत प्रयासी हैं।।

जंग जगत से जीत गई तुम, घट हम सबके रीत गए।
सूना सा संसार हो गया, पल दिन महीने बीत गए।
पौष्टिक पोषण मिलने पर भी, नयन रहे उपवासी हंै।।

यंत्र तंत्र की सुविधा अनगिन, इस विज्ञान जगत ने दी।
विफल शक्तियां मत्र्यलोक से, दिव्य लोक में जाने की।
खोलें भले प्रयोगशालाएं, किन्तु कुसुम आकाशी है।।