अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

गाथा गौरव री गूंजेला सदियाँ तक अवनी अम्बर में।
ममता री बा मोहक मूरत नित घूमै भीतर बाहर में।।

श्री तुलसी महाप्रा प्रभु महाश्रमण री पाई रिझवारी,
सर्वस्व समर्पण गुरु चरणां शासन सेवा में इकतारी,
विश्राम नहीं अविराम सदा उठती लहरां श्रम सागर में।

चेहरो चुम्बक सो आकर्षक वत्सलता झरती नयणां में,
इक आँख दिखाता गलती पर माधुर्य टपकतो वयणां में,
जीवन री ज्योत जगावण म्हारै बैठ्या हो मन मंदर में।

चुटकी में चिंता हर लेता, जो थांरै चरणां में आता,
पूनम सो उजियारो करता, आशापूरण शासनमाता,
बै वचनसिद्धि री घटनावां, बोलै है जन-जन रै स्वर में।

महाश्रमणीजी म्हां छोटा सतियाँ पर करुणा दृग बरसाता,
संयम री चादर ने उजली रखणै री शिक्षा फरमाता,
बै शिक्षा रा अनमोल वचन अंकित है दिल री गागर में।।

लय: तुलसी-तुलसी-तुलसी-तुलसी----