मन-मंदिर की मूरत

मन-मंदिर की मूरत

साध्वी श्रुतिप्रभा

जागी जन्मों की पुण्याई,
संयम पथ पर कदम बढ़ाया,
गुरु की अनहद कृपा दृष्टि से
शासन माँ का साया पाया।।

हर पल देखा नयनयुगल से,
वत्सलता का बहता झरना,
छोटी बातों से बतलाती,
ज्ञान-पिटक को कैसे भरना।।

लाड़-प्यार से हमें सिखाती,
अनुशासन को कैसे सहना,
निष्ठापंचक अपनाकर के
श्रेष्ठ साध्वी सबको बनना।।

मंगलपाठ प्राणवान था,
जन-जन की पीड़ा को हरता,
अंतर्मानस को झंकृत कर
ऊर्जा को संचारित करता।।

पास नहीं पर दूर भले हो,
रखना मेरा ध्यान निरंतर,
मन-मंदिर की मूरत तुम हो,
समरू मैं तुमको विशिवास।।ण्