अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्
तुलसी युग की अरुणिमा आभा संघ हुआ गुलजार।
सदियाँ याद करेगी श्रद्धा से नमन करेगी।।

मन मंदिर में शोभित गुरु का ही आसन,
दर्शन गुरु का लगता मधुरिम सावन,
गुरु ही मेरा संजीवन है गुरु जीवन आधार।

प्रबल शौर्य पौरुष का सफर था सुनहरा,
प्रखर लेखनी का चलता अविरल पहरा,
सदा यशस्वी वर वर्चस्वी सृजन किया अनपार।

नारी जगत को तमने पल-पल संवारा,
उलझन की हर गुत्थी से उसको उबारा,
किन शब्दों में व्यक्त करें हम अनगिन है उपकार,
धन्य हो गए चारों तीरथ पा तेरी जयकार।

उपलब्धियों की अनुपम दास्तां सुहानी,
जन-जन के सुख पर तेरी अभिनव कहानी,
शासनमाता के गीतों से गूंज उठा संसार।

लय: स्वर्ग से सुंदर---