अर्हम
अर्हम
किन पावन परमाणु पुंज से निर्मित था व्यक्तित्व तुम्हारा।
जिसने पाई सुखद सन्निधि उसने अपना भाग्य संवारा।।
कर्मठ हाथों ने गणवन में संस्कारों के सुमन खिलाए,
आगमसोची सूझबूझ से मुश्किल पथ आसान बनाए,
टूटी-बिखरी आस्थाओं को दे आलंबन सदा उबारा।
लक्ष्यभ्रमित मानव को तुमने मंजिल का अहसास कराया,
दर्दिल आम-खास सब जन को स्नेहदान देकर सहलाया,
साँस-साँस में संघभक्ति का बजता रहता था इकतारा।
बौद्धिकता अरु विनयशीलता रहीं सदा बनकर सहचरी,
सहज सरलता निष्पृहता से गुरु-दिल स्थान बनाया भारी,
अर्हताएँ देख अलौकिक गुरुओं ने तुमको सत्कारा।
ककहरा जीवन-विकास का सीखा मैंने पास तुम्हारे,
प्यासी अंखियाँ दर्शन पाने ढूँढ़ रही हैं गगन सितारे,
स्मृतियों की रील निरंतर चलती नजर न आए कहीं किनारा।