हमारे मन की उपज है नकारात्मक विचार

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हमारे मन की उपज है नकारात्मक विचार

चंडीगढ़।
चिंतित होना एक स्वाभाविक घटना है। यह तब महसूस होता है जब व्यक्ति किसी भी तरह के वास्तविक या कथित खतरे का सामना करता है। भीड़ के सामने बोलने, कैमरे का सामना करने या परीक्षा में प्रवेश करने से ठीक पहले एक व्यक्ति चिंतन का अनुभव कर सकता है। कुछ लोगों के लिए यह चिंताजनक महसूस करने का सामान्य अनुभव अधिक सामान्य और अक्सर होता है। इससे उनके दैनिक जीवन के कार्य और रिश्तों में क्लेश आदि का हस्तक्षेप होने लगता है। मन द्वारा ही रोग अथवा चिंता की समाप्ति संभव है तथा मन द्वारा ही अच्छे स्वास्थ्य अथवा प्रसन्नता की प्राप्ति संभव है। संसार में वे व्यक्ति ही भौतिक और सामाजिक परिस्थितियों में अपने को समायोजित कर पाते हैं, जिनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में व्यक्त किए। मुनिश्री ने आगे कहा कि भय कल्पना मात्र है, जो हमारे मन की उपज है। यह एक नकारात्मक विचार है। मन से भय का चिंतन समाप्त हो जाना, उसका नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाना ही उपचार है।
मुनिश्री ने कहा कि मन में रोग के भय के चिंतन से मुक्त हो जाइए। जब तक भय से मुक्त नहीं होंगे, तब तक बात नहीं बनेगी। रोग के भय से मुक्त होना ही रोग मुक्त होना है। आरोग्य के लिए रोग के भय से मुक्ति, समृद्धि के लिए अभाव के भय से मुक्ति, जीवन को संपूर्णतया से जीने के लिए मृत्यु के भय से मुक्ति, ज्ञान के लिए अज्ञानता के भय से मुक्ति, प्रकाश के लिए अंधकार के भय से मुक्ति, प्रेम के लिए घृणा से, भय से मुक्ति, विजय के लिए पराजय के भय से मुक्तिµभय से मुक्त होना ही सर्वांगीण विकास का एकमात्र मार्ग है।