सद्भावना का उदाहरण है ब्रह्मकुमारी परिवार: आचार्यश्राी महाश्रामण
आबू रोड स्थित ब्रह्मकुमारी मुख्यालय में आचार्यप्रवर का पदार्पण
आबु रोड, 17 फरवरी, 2023
भारतीय ऋषि परंपरा के महान महर्षि आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः विहार कर आबु रोड के ब्रह्मकुमारी मुख्यालय पधारे। ब्रह्मकुमारी परिवार ने पूज्यप्रवर सहित धवल सेना का आध्यात्मिक स्वागत किया। महातपस्वी आचार्यप्रवर ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारा जीवन दो तत्त्वों का योग है। एक तत्त्व हैµआत्मा और दूसरा शरीर। आत्मा और शरीर का मिश्रित रूप हमारा जीवन है। जहाँ कोरी आत्मा या कोरा शरीर है, वहाँ जीवन नहीं हो सकता। जैसे मोक्ष में परम आत्माएँ हैं, वहाँ शरीर नहीं है। मृत शरीर पड़ा है, पर उसमें आत्मा नहीं तो जीवन नहीं हो सकता।
मृत्यु है, आत्मा और शरीर का वियुक्त हो जाना। शरीर और आत्मा का आत्यंतिक वियोग मोक्ष है। हमारे शरीर में आत्मा है। अनादि काल से आत्मा का अस्तित्व है और हमेशा रहेगा। आत्मा जन्म-मरण के चक्र में भ्रमित हो रही है। जन्म-मरण के साथ दुःख भी जुड़ा हुआ है। दुःख से मुक्त होना प्राणी का भाव होता है। इसके लिए जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त होना पड़ेगा तभी दुःख मुक्ति हो सकती है।
जन्म-मरण की परंपरा से निकलने का उपाय है, अध्यात्म की साधना। जब आत्मा समता में उपस्थित हो जाती है, फिर संकल्प-विकल्पों का भी नाश हो जाता है। राग-द्वेष के भाव नहीं रहते। राग-द्वेष के भाव जन्म-मरण की परंपरा के हेतु होते हैं। राग-द्वेष के भाव क्षय होते ही आत्मा शरीर से हमेशा के लिए मुक्त हो मोक्ष में विराजमान हो जाती है। परमात्मा स्वरूप को प्राप्त हो जाती है।
समता की साधना अध्यात्म का मूल तत्त्व है। हम जीवन जीते हुए भी समता में रह सकें। समता के अनेक आयाम हैंµअनासक्ति, अहिंसा की चेतना। कमल पत्र की तरह आदमी संसार सागर में रहते हुए भी निर्लिप्त-अनासक्त रहे। यह अध्यात्म की साधना है। जीवन में अनुकूलता-प्रतिकूलता, सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, मान-अपमान ये स्थितियाँ आ सकती हैं, इन सबमें समता रहे। यह एक प्रसंग से समझाया कि अभाव में दुखी न बनें।
हमारे जीवन में ज्यों-ज्यों समता का भाव पुष्ट होता है, त्यों-त्यों मानो परमात्मस्वरूप के निकट होते चले जाते हैं। आचार्यश्री ने जैन संतों के पाँच महाव्रतों को एवं जैन साधना को समझाया। जैन साधु स्वकल्याण के साथ परकल्याण का भी जितना हो सके, करने का यथासंभव प्रयास करते हैं। अहिंसा यात्रा और उसके तीन संकल्पों को भी विस्तार से समझाया। हम जगह-जगह जाते हैं, ब्रह्मकुमारी परिवार हमारे पास आता है। आज हम ब्रह्मकुमारी परिवार में आए हैं। सद्भावना का उदाहरण है ब्रह्मकुमारी परिवार। उदारता का दर्शन मैंने ब्रह्मकुमारी परिवार की सदस्याओं में किया है। आचार्यश्री ने फरमाया कि आज इनके प्रांगण में आए हैं। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का हम यथाशक्य प्रचार करते हैं। प्रतिज्ञाएँ भी करवाते हैं। ताकि हमारे देश में शांति रहे।
शांति हमारे भीतर में भी रहे और बाहर भी रहे। शांति के लिए समता की साधना करें। सबके प्रति मैत्री भाव रहे। मैं ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय परिवार के प्रति अध्यात्म मंगलकामना करता हूँ। ये पूरे विश्व में मंगल करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय परंपरा दुःख मुक्ति की परंपरा रही है। शक्ति और सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं, मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं। उसके लिए हमारे सामने मार्ग हो तो आदमी गंतव्य तक पहुँच जाता है। भारत में अनेक परंपराएँ हैं। जिनसे हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। राजयोग में अध्यात्म पर अधिक बल दिया जाता है। ध्यान भी करवाया जाता है। जैन परंपरा में भी ध्यान को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। प्रेक्षाध्यान पद्धति से अनेक लोगों ने शांति प्राप्त की है।
दीदी ने बताया कि आचार्यश्री गीता में उल्लेखित स्थितप्रज्ञ का साक्षात उदाहरण हैं। ‘रहो भीतर, जीयो बाहर’ यह सूक्ति आपके जीवन में अनुभव की जा सकती है। आपके लिए कहना चाहुँगी कि महापुरुषों के अभ्योद्य से जब ज्योतिर्मय रश्मियाँ आलोकित होती हैं। महापुरुषों के प्रवचनों से जीवन-पथ पाकर जनमानस सुवासित होता है। जीवन में आत्मिक सुख व शांति के लिए महापुरुषों की संगत जरूरी है। उनके मुखारविंद से अमृत वचन प्रवाहित होते हैं। ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सेक्रेटरी मृत्युंजय भाई ने पूज्यप्रवर का स्वागत करते हुए कहा कि आज प्रजापति ब्रह्मकुमारी विश्वविद्यालय का नया इतिहास देख रहे हैं। आज शिव जयंती भी है। आपने लंबी यात्राएँ की हैं। हम आपका स्वागत करते हैं। त्याग-तपस्या में जैन धर्म और ईश्वरीय विद्यालय में समन्वय है। बाबा ने आप जैसे तपस्वी, दिव्य पुरुषों को यहाँ भेजा है। पदयात्राएँ करते हुए जनकल्याण कर रहे हैं। आप भी विश्व शांति की प्रेरणाएँ दे रहे हैं।
मुनि कुमार श्रमण जी ने अहिंसा यात्रा के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा कि आज तेरापंथ धर्मसंघ का ब्रह्मकुमारी परिवार से पारिवारिक मिलन हो रहा है। दोनों में काफी समानताएँ हैं। बहन गीता दीदी ने राजयोग के विषय में विस्तार से समझाया। राजयोग पर डाॅक्यूमेंटरी दर्शायी गई। राजयोग की अनुभूति करवाई। ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा पूज्यप्रवर का स्मृति चिÐ एवं साहित्य से सम्मान किया गया। तेरापंथी महासभा द्वारा साहित्य से ब्रह्मकुमारी परिवार का सम्मान किया गया। परमपिता की स्मृति में ध्यान, शांति का प्रयोग करवाया गया। कार्यक्रम का संचालन दीदी ने किया।