गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञाान भीतर के अंधकार को दूर कर सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञाान भीतर के अंधकार को दूर कर सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

सियाल, 18 फरवरी, 2023
मोक्ष मार्ग के सेतू आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 18 किलोमीटर का विहार कर सियाल पधारे। शांतिदूत की इस यात्रा का राजस्थान का आज का अंतिम प्रवास है। इसके पश्चात आचार्यप्रवर गुजरात की धरा पर पदार्पण करेंगे। मुख्य प्रवचन में महामनीषी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शरीर में पाँच इंद्रियाँ हैं, जो ज्ञानेंद्रियाँ हैं, वे क्षयोपशम भाव है। भावेंद्रिय के रूप में है। पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी होती हैं। हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियाँ व श्रोत-चक्षु आदि ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं। कर्ण-श्रवणेन्द्रिय होती है। श्रवणेन्द्रिय होने पर ही कोई प्राणी पंचेन्द्रिय कहलाने का अधिकारी होता है। इंद्रिय-जगत में श्रवणेन्द्रिय का होना, आकाश के शिखर को छूना होता है। मनुष्य व पंचेन्द्रिय तिर्यन्चों में श्रवणेन्द्रिय होती है। देवों व नारकीय जीवों के भी श्रवणेन्द्रिय होती है।
शास्त्रकार ने कहा है कि सुनकर आदमी कल्याण को व पाप को भी जान लेता है। फिर जो श्रेय हो, अच्छा हो उसको आचरण में लाना चाहिए। जो पाप है, उसको छोड़ देना चाहिए। वर्तमान में तो चक्षुरिन्द्रिय का भी बड़ा उपयोग है। अनेक ग्रंथ पढ़ने को मिल सकते हैं। चक्षुरिन्द्रिय भी ज्ञान का बड़ा माध्यम है। श्रोत्र और चक्षु से ज्ञान की पुष्टि हो सकती है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो कान की अपेक्षा आँख का बहुत महत्त्व है। प्राचीन काल में तो ज्ञान को सुनकर ग्रहण किया जाता था। स्मृति शक्ति ठीक हो तो ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। श्रुति के साथ स्मृति जुड़ जाए तो ज्ञान याद रह सकता है। प्राचीन काल में तो गुरु परंपरा से बिना लिखे ज्ञान चलता रहा है। पर बाद में लिखने की परंपरा शुरू हो गई। स्मृति धीरे-धीरे कमजोर होने लगी। लिखा हुआ तो कभी भी कोई भी पढ़ सकता है। कोरे ग्रंथों से पूरा ज्ञान नहीं हो पाता, पढ़ाने वाला गुरु भी चाहिए। इसलिए गुरु-शिक्षक का महत्त्व है। उच्चारण-शुद्धि भी गुरु ही करा सकता है। एक बिंदु-मात्रा के फर्क से अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
अध्ययन में तीन चीजें चाहिएµपढ़ाने वाला जानकार हो, पढ़ने वाला प्रतिभाशाली हो और साथ में पुस्तक-लेखन सामग्री भी हो। तीनों के होने से विद्यार्थी का अच्छा विकास हो सकता है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी अनुशास्ता होने के साथ पढ़ाते भी थे। एक व्यक्ति के अनेक पर्याय हो सकते हैं। हम सुनकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करें। गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान भीतर के अंधकार को दूर करने वाला हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।