व्यक्ति भोजन, भजन, भाषा और विभूषा पर ध्यान देकर आत्मा को पवित्र बनाए: आचार्यश्री महाश्रमण
कियारिया, 16 फरवरी, 2023
दिव्य शक्ति के भंडार आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर कियारिया ग्राम काॅस्मो रेसीडेंसी पधारे। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में दिव्य पुरुष ने फरमाया कि आदमी जीवन जीता है। एक प्रश्न किया जा सकता है कि हम जीवन क्यों जीएँ? जीवन जीने का हमारा प्रयोजन क्या है। जीवन जीने के लिए बहुत कुछ करना होता है, समय लगाना पड़ता है। हम जीवन के लिए बहुत कुछ करते हैं, उसका आखिर लाभ क्या मिलेगा? जैन वाङ्मय में बताया गया है कि एक बड़ा लाभ इस जीवन से मिल सकता है-पूर्व कर्मों का क्षय करना। यह लाभ हमें जीवन जीने से और शरीर को धारण करने से मिल सकता है। जीवन है तो साधना-तपस्या, स्वाध्याय, जप, वैयावृत्य करें तो पूर्व कर्म की निर्जरा का लाभ मिल सकता है।
जन्म-मरण की परंपरा चल रही है, इस परंपरा से छुटकारा पाना, मोक्ष पाना, यह परम लाभ होता है। वह लाभ इस मानव जीवन में बहुत अच्छे ढंग से पाया जा सकता है। मनुष्य जीवन के सिवाय कोई भी योनी के जीव मोक्ष प्राप्त कर नहीं सकते। मनुष्य जन्म से ही सीधा मोक्ष में जाया जा सकता है। इसके लिए संवर की साधना और कर्म निर्जरा करनी होगी। हम मोक्ष की ओर आगे बढ़ जाएँ तो बहुत बड़ा लाभ मिल सकता है। शरीर को टिकाना है, तो खाना-पीना भी होता है। तपस्या करने के लिए भी बीच-बीच में खाना जरूरी है। भजन करने से पहले भोजन आवश्यक है। भोजन जीवन के लिए है, पर जीवन भोजन के लिए न हो। जीवन साधना के लिए हो। भोजन तो जीवन का साध्य नहीं है, साधन है।
आदमी भोजन, भजन, भाषा और भूषा पर भी ध्यान दे। णमोकार मंत्र कंठ और मन में रहे। णमोकार महामंत्र जैन होने की पहचान है। भजन करने से ही भोजन की सार्थकता है। भोजन में भी संयम हो। भाषा भी अयथार्थ-कटु न हो। मीठा बोलो। हर सत्य बोलना जरूरी नहीं है। साधु के मृषावाद बोलने का त्याग है, पर हर सत्य बोलना जरूरी नहीं है। बोलें तो सत्य ही बोलें। अहिंसा और मैत्री का जीवन जीएँ। साधु विभूषा से बचे, सहज रहे। भीतर की सद्गुणों की भूषा तैयार करो। विभूषा जो बाहर की है, वो भारभूत है। हम सद्गुणों के आभूषण पहनें। हम भोजन, भजन, भाषा और विभूषा पर ध्यान देकर आत्मा को अच्छा बनाने का प्रयास करें। पूर्व कर्मों का क्षय करने के लिए इस शरीर को धारण करें।