व्यक्ति के जीवन में हो कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति के जीवन में हो कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक: आचार्यश्री महाश्रमण

हड़ाद, मचकोड़ा ग्राम, 20 फरवरी, 2023
दिव्य शक्ति के भंडार आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 18 का विहार कर मचकोड़ा ग्राम पधारे। पूज्यप्रवर ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक होना चाहिए। विवेक एक अच्छी बात होती है। कर्तव्य और अकर्तव्य क्या है, यह विवेचन होना चाहिए। जिस आदमी में कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध होता है, वो उस विषय में विवेकशील है। जिसमें यह ज्ञान नहीं होता है, वह नुकसान में भी जा सकता है। गुरुदेव तुलसी का एक छोटा-सा ग्रंथ हैµ‘कर्तव्य षट् त्रिशिंका’। उसके पहले श्लोक में कहा गया है कि जिसे कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान नहीं है, उसका कभी ऐसा अनिष्ट हो सकता है। जो उसने सोचा भी न हो।
कर्तव्य-अकर्तव्य के विवेक से जो शून्य होते हैं, उनमें एक प्रकार का पशुत्व आ जाता है। अपना-अपना कर्तव्य हो सकता है। साधु का सबसे पहला कर्तव्य है, अपने साधुत्व की सुरक्षा करना। इसके आगे दूसरे कार्य गौण हो सकते हैं। साधुपन पहली चीज है। अपनी आत्मा की साधना करे, वह साधु होता है।
गृहस्थ हो या साधु फालतू निकम्मा न बैठा रहे, कोई अच्छे काम में लगे रहो। माता-पिता होने के नाते संतान के प्रति कर्तव्य हो जाते हैं, ऐसे अनेक कर्तव्य गृहस्थ के हो सकते हैं। माता-पिता अच्छे संस्कार देने वाले हों, बच्चे को अच्छा पढ़ाएँ। अन्यथा वे संतान के शत्रु हो सकते हैं। माता-पिता मिलकर बच्चे पर बहुत उपकार करते हैं। माता-पिता का संतान के प्रति कर्तव्य होता है तो संतान का भी माता-पिता के प्रति कर्तव्य होता है। हम बच्चे थे तो माँ-बाप ने सेवा की थी, अब हम बड़े हो गए हैं, तो माँ-बाप की सेवा हम करें। माता-पिता को धार्मिक सहयोग दें। हम हमारे धार्मिक कर्तव्यों के प्रति विशेषतया जागरूक रहें। कर्तव्य बोध और कर्तव्य का पालन अच्छा होता है, तो वो जीवन और आत्मा के लिए हितकर-कल्याणकारी हो सकता है।